मध्यस्थता के माध्यम से विवादों के निराकरण की है भारत में प्राचीन परंपरा: न्यायाधिपति शुक्ला
इन्दौर, 23 सितंबर (हि.स.)। भारत में मध्यस्थता के माध्यम से विवादों के निराकरण की प्राचीन परंपरा है। मध्यस्थता की अवधारणा आज भी प्रासंगिक और कारगर है। मध्यस्थता के माध्यम से विवादों का सहजता के साथ बेहतर रूप से निराकरण होता है। यह बात मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय खण्डपीठ इन्दौर के कान्फ्रेंस हॉल में चल रही तीन दिवसीय सामुदायिक मध्यस्थता प्रशिक्षण कार्यक्रम में कही गई।
उच्च न्यायालय खण्डपीठ इन्दौर के प्रशासनिक न्यायाधिपति विवेक रूसिया के निर्देशन में न्यायाधिपति विजय कुमार शुक्ला द्वारा सोमवार को कार्यक्रम का दीप प्रज्ज्वलित कर शुभारंभ किया गया। न्यायाधिपति विजय कुमार शुक्ला ने कार्यक्रम में शामिल विभिन्न समाजों के प्रतिभागियों को संबोधित किया गया। उन्होंने कहा कि सामुदायिक मध्यस्थता कार्यक्रम में मध्यस्थता प्रमुख है। संस्कृत के एक श्लोक “समः विचारः विवादं विद्यं समं ही विवादस्थ दूरस्थ समं विवादे सुखदे खयोमद समं विनं विवादः न कार्यः” के माध्यम से उनके द्वारा मध्यस्थता शब्द की मूल भावना को व्यक्त किया गया।
उन्होंने कहा कि मध्यस्थता आज की आधुनिक युग की देन नहीं है, हमारे धार्मिक ग्रंथ रामायण, महाभारत में भी मध्यस्थता के उदाहरण मिलते हैं। रामायण में श्रीराम जी द्वारा अंगद को राजदूत बनाकर मध्यस्थता हेतु रावण के पास भेजा गया था। महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं शांतिदूत बनकर पांडवों और कौरवों के मध्य मध्यस्थता कराने का प्रयास किया था। समाज में पंचायत के द्वारा मध्यस्थता की भूमिका निभाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंचायत के माध्यम से उन्होंने “जुम्मन शेख और अलगू चौधरी” के बीच हुए विवाद का निराकरण पंचायत के माध्यम से होने की बात बताई।
उन्होंने कहा कि हमारे समुदाय में प्राचीन समय से मुखिया का फैसला मानने की परंपरा रही है। उनके द्वारा प्रतिभागियों को अपने समाज में मुखिया की तरह कार्य करने हेतु कहा गया। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण पश्चात समाज में मध्यस्थता की भूमिका का अच्छे से निर्वहन करें। प्रिंसिपल रजिस्ट्रार म०प्र० उच्च न्यायालय खण्डपीठ इन्दौर अनूप कुमार त्रिपाठी द्वारा आभार व्यक्त किया गया।
कार्यक्रम के प्रथम दिवस के प्रथम सत्र में अध्यक्ष जिला उपभोक्ता फोरम भोपाल एवं ट्रेनर गिरबाला सिंह द्वारा संघर्ष की प्रकृति एवं कारण तथा संघर्ष प्रबंधन के बारे में बताया गया एवं पी.पी.टी. के माध्यम से विषय वस्तु से अवगत कराया गया। भूतपूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश डॉ. मोहम्मद शमीम द्वारा दूसरे सत्र में मध्यस्थता परिभाषा और अवधारणा विषय के बारे में जानकारी दी गई तथा मध्यस्थता के लाभ, मध्यस्थों की भूमिका, अधिनिर्णय एवं पंच की मध्यस्थता की भिन्नता एवं गुण के संबंध में जानकारी दी गई।
तीसरे सत्र में मध्यस्थता प्रक्रिया एवं चरण के अन्तर्गत परिचय तथा उद्घाटक कथन, संयुक्त सत्र, बैठक, समाप्ति, समझौता (सफल), समझौता नहीं (असफल) आदि के संबंध में तथा चौथे सत्र में मध्यस्थता में संचार के अन्तर्गत परिभाषा और प्रक्रिया, मौखिक एवं गैर मौखिक संचार तथा संचार में बाधाएं के संबंध में जानकारी प्रदाय की गई। कार्यक्रम के प्रथम दिवस के अंत में भूतपूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश डॉ. मोहम्मद शमीम एवं अध्यक्ष जिला उपभोक्ता फोरम भोपाल एवं ट्रेनर गिरबाला सिंह द्वारा संयुक्त रूप से प्रतिभागियों को कृत्रिम अभ्यास-1 (राबर्ट विरुद्ध अरुण) का अभ्यास कराया गया। कार्यक्रम का संचालन ओ.एस.डी/रजिस्ट्रार म.प्र. उच्च न्यायालय खण्डपीठ इन्दौर नवीन पाराशर द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में प्रिंसिपल रजिस्ट्रार अनूप कुमार त्रिपाठी, ओ.एस.डी/रजिस्ट्रार नवीन पाराशर, भूतपूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश डॉ. मो. शमीम, अध्यक्ष जिला उपभोक्ता फोरम भोपाल मिस गिरिबाला सिंह, अध्यक्ष उच्च न्यायालय अभिभाषक संघ इन्दौर रितेश ईनाणी, सचिव उच्च न्यायालय अभिभाषक संघ इन्दौर भुवन गौतम, उपाध्यक्ष उच्च न्यायालय अभिभाषक संघ इन्दौर यशपाल राठौर एवं बार कार्यकारिणी के सदस्य विधिक सहायता अधिकारी प्रभात पाण्डेय, उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति मनीष कौशिक तथा म.प्र. उच्च न्यायालय एवं विधिक सेवा समिति के कर्मचारी के साथ विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर
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