यदि स्वस्थ्य रहना है तो रात्रि भोजन त्यागना होगा : जैन संत
मन्दसौर, 20 अगस्त (हि.स.)। संसार में प्राणियों की चार गति मानी गई है। नरक गति, तिरयन्च गति, देवगति व मनुष्य गति। आगामी भव में हमें कैसी गति मिलेगी यह हमारा कर्म पर निर्भर करती है। यदि हम पापकर्म करेंगे तो हमें नरक व तिरयन्च गति मिलना तय है लेकिन हम अच्छ कर्म जैसे दान पुण्य, तप तपस्या, धर्म आराधना करेंगे तो हमें पुन: मनुष्य या देवगति मिल सकती है यह हमें तय करना है कि हम कौनसी गति में जाना है।
उक्त उद्गार प.पू. जैन संत श्री योगरूचि विजयजी म.सा. ने मंगलवार को नईआबादी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने धर्मसभा में कहा कि जैन धर्म ही नहीं बल्कि वैदिक व बौद्ध सात्यि में भी रात्रि भोजन के दुष्परिणाम बताये गये है। कई ग्रंथों में तो रात्रि भोजन को नरक का द्वार भी कहा गया है। हमें रात्रि में भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिये अर्थात सूर्यास्त के पूर्व ही भोजन करना चाहिये। वैदिक साहित्य में तीन चीजे रात्रि में निषेध बताई गई है। रात्रि भोजन, देव पूजा व स्नान अर्थात मनुष्य को ये तीनों नहीं करना चाहिये। जैन धर्म व दर्शन का जो मत रात्रि भोजन को लेकर है वही मत वैदिक व बौद्ध साहित्य में भी मिलता है। इसका सीधा अर्थ है भारत के जितने भी प्राचीन धर्म है वे सभी रात्रि भोजन को निषेध मानते है।
हिन्दुस्थान समाचार / अशोक झलोया / राजू विश्वकर्मा
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