ग्वालियर: प्रपंचों से मुक्त करा देती है महामाया की उपासना: मां कनकेश्वरी

ग्वालियर: प्रपंचों से मुक्त करा देती है महामाया की उपासना: मां कनकेश्वरी
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ग्वालियर: प्रपंचों से मुक्त करा देती है महामाया की उपासना: मां कनकेश्वरी


ग्वालियर, 25 नवंबर (हि.स.)। मनुष्य स्वयं के प्रपंचों में फंसा हुआ है, लेकिन यदि वह महामाया की उपासना करता है तो वह उसे प्रपंचों से मुक्त कर देती है। लेकिन मां की आराधना करने के लिए व्यक्ति का सदाचारी होना जरूरी है।

यह विचार अग्नि अखाड़े की महामंडलेश्वर मां कनकेश्वरी ने महलगांव करौलीमाता मंदिर एवं कुंवर महाराज मंदिर प्रांगण में आयोजित श्रीमद्देवी कथा के विश्राम दिवस शनिवार को व्यक्त किए। इस अवसर पर खनेताधाम के महामंडलेश्वरी रामभूषण दास महाराज एवं धूमेश्वर धाम के अनिरु द्धवन महाराज का महामंडेश्वर कपिल मुनि महाराज ने स्वागत सम्मान किया। वहीं 26 नवम्बर रविवार को हवन पूजन और नवकुंडीय यज्ञ की पूर्णाहुति और भंडारे के साथ 11 दिवसीय अनुष्ठान का समापन होगा।

देवी कनकेश्वरी ने देवी कथा का रसपान कराते हुए कहा कि ईश्वर को समझते-समझते यदि हमने परमात्मा को निकटता से देख लिया, तो उसे हमने मां कहा। भगवान द्वारिकाधीश हों या श्रीनाथ भगवान, उनका श्रंृगार नाक के आभूषण से आरंभ होता है, क्योंंकि वो स्वभाव से मां है। पूतना जैसी राक्षस भी जब परमात्मा के निकट पहुंच गई तो उन्होंने उसके पापों से दृष्टि फेरकर उसे अपना परमधाम प्रदान किया, इसलिए परम ब्रह्म की आराधना के साथ संसार की सेवा करते रहें।

उन्होंने कहा कि दुनिया में सिर्फ भारत भूमि ही ऐसी जगह है, जहां जप, तप, कथा यज्ञ से अपने साथ अपने पूर्वजों की भी सद्गति करा सकते हैं। यह सुख सुविधा तो स्वर्ग में भी उपलब्ध नहीं हैं। सूर्य की आराधना करो, सूर्य के प्रकाश से सारी विद्या प्रकाशित हो जाती हैं। जो श्रीकृष्ण के पास जाने का प्रयास करते हैं, उन पर राधारानी का भी अनुगृह होता है। सिद्ध साधु कभी क्रोध नहीं करता है, वह तभी सिद्ध होता है, लेकिन जब वह क्रोध करता है तो वह क्रोध नहीं उसका अनुगृह होता है। गुरू चरण औैर गुरू वचन साधक की आध्यात्मिक उन्नति का आधार है। चित्त जितना विशुद्ध होता है, तो चेतना उसी गति से उन्नति करती है।

तुलसी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि सालिगराम ने तुलसी को वरदान दिया कि तुलसी के बगैर नारायण की पूजा नहीं होगी। स्वयं नारायण ने तुलसी स्त्रोत का पाठ किया है। धर्म-कर्म के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि अपनी मर्जी से वासना मुक्त रहने का प्रयास कर्म हैं और वेदों के अनुसार जीवन निर्वहन करना धर्म हैं। अपनी मर्जी से करोगे तो बंधन और सद्गुरू की मर्जी से करोगे मुक्त हो जाएगी।

हिन्दुस्थान समाचार/शरद

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