ग्वालियरः नरवाई प्रबंधन एवं ग्रीष्मकालीन धान की बजाय अन्य फसलों के प्रति किसानों को किया जागरूक
ग्वालियर, 12 अप्रैल (हि.स.)। नरवाई प्रबंधन एवं ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर कम पानी, कम लागत व कम समय में अच्छी पैदावार देने वाली फसलों के प्रति किसानों को आकर्षित करने के लिये जिले में कृषक जागरूकता कार्यक्रम व कृषक संगोष्ठियां आयोजित की जा रही हैं। इस कड़ी में कृषि उपज मंडी समति डबरा में एक दिवसीय कृषक वैज्ञानिक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन जनपद पंचायत डबरा की अध्यक्ष प्रवेश गुर्जर के मुख्य आतिथ्य में हुआ। उन्होंने इस अवसर पर आह्वान किया कि पानी हमारी प्रमुख संपदा व जीवनदायी है। इसलिये पानी की बचत करें और धान की बजाय कम पानी में अधिक पैदावार देने वाली फसलें उगाएं।
कृषि विज्ञान केन्द्र ग्वालियर की वैज्ञानिक डॉ. रश्मि वाजपेयी ने कार्यक्रम में किसानों को धान की फसल के स्थान पर ग्रीष्मकालीन मूँग एवं कद्दू वर्गीय फसलें लगाने के संबंध में उपयोगी जानकारी दी। डबरा के एसडीएम दिव्यांशु चौधरी ने किसानों से कहा कि पराली जलाना हर तरह से हानिकारक है। साथ ही कानूनी रूप से भी उचित नहीं है। उन्होंने कहा यदि किसी ने पराली जलाई तो कानूनी कार्रवाई की जायेगी।
कृषि उप संचालक आरएस शाक्यवार ने किसानों से कहा कि नरवाई जलाने के बजाय हैप्पी सीडर के माध्यम से बुवाई करना चाहिए। इससे लागत भी कम आयेगी। साथ ही पराली का उपयोग खाद के रूप में होगा। उन्होंने किसानों की आय दोगुना करने के संबंध में भी उपयोगी बातें बताईं। कार्यक्रम में अनुविभागीय कृषि अधिकारी रणवीर सिंह जाटव, सहायक कृषि यंत्री त्रिलोकचंद पाटीदार, सहायक संचालक कृषि कुलदीप एवं वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी विशाल सिंह यादव ने कृषि यंत्रों से पराली को खेत में मिलाने की विधि, नवीन कृषि तकनीक, ग्रीष्म ऋतु में हरी खाद के लिये ढेंचा लगाने इत्यादि के बारे में जानकारी दी।
प्रगतिशील कृषक खुद के खेतों के साथ अन्य किसानों के खेतों में भी करा रहे हैं नरवाई प्रबंधन
जिले के प्रगतिशील किसान फसल अवशेष (नरवाई) जलाने के बजाय उसका प्रबंधन कर अन्य किसानों के लिये प्रेरणास्त्रोत बन रहे हैं। जिले के ग्राम टेकनपुर निवासी कृषक खैर सिंह व चीनौर निवासी महेश जाटव ने स्ट्रारीपर यंत्र से न केवल अपने खेतों में नरवाई का प्रबंधन किया है, बल्कि अपनी मशीन को किराए पर देकर दूसरे किसानों के खेतों में भी नरवाई का प्रबंधन करा रहे हैं। कृषि अभियांत्रिकी विभाग की योजना के तहत इन दोनों किसानों ने स्ट्रारीपर खरीदा है। इसके लिये उन्हें डेढ़-डेढ़ लाख रुपये का अनुदान मिला है। जिला प्रशासन ने किसान भाइयों से नरवाई जलाने की बजाय खेतों की उत्पादकता बनाए रखने के लिये मशीनों का उपयोग कर फसल अवशेषों का प्रबंधन करने की अपील की है।
कृषक खैर सिंह व महेश जाटव स्ट्रारीपर चलाकर खेतों में बची गेहूँ की नरवाई से भूषा बनाते हैं, जिसका उपयोग पशु आहार व ईंधन के रूप में किया जा रहा है। जिले में स्ट्रॉ रीपर मशीन के माध्यम से नरवाई प्रबंधन के लिये कृषि विभाग द्वारा जन जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। कृषि उप संचालक आरएस शाक्यवार ने बताया स्ट्रॉ रीपर मशीन के उपयोग से कृषक के खेत में कटाई उपरांत बची नरवाई का बेहतर प्रबंधन हो जाता है, जिससे अग्नि दुर्घटनाओं से निदान मिलता है। साथ ही पर्यावरण सरक्षण व संतुलन बना रहता है। खेत की मिट्टी स्वस्थ व उपजाऊ बनी रहती है।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

