मप्रः कुबेरेश्वरधाम पर बैकुंठ चतुर्दशी पर उमड़ा आस्था का सैलाब

मप्रः कुबेरेश्वरधाम पर बैकुंठ चतुर्दशी पर उमड़ा आस्था का सैलाब
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मप्रः कुबेरेश्वरधाम पर बैकुंठ चतुर्दशी पर उमड़ा आस्था का सैलाब


- हरि हर मिलन के साक्षी बने हजारों श्रद्धालु

सीहोर, 26 नवंबर (हि.स.)। जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी पर रविवार को आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। देशभर से यहां पहुंचे श्रद्धालुओं ने कुबेरेश्वर धाम पर जल, नरियल, दूध, फल और फूल अर्पित कर पूजन-अर्चन किया। इस मौके पर कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने श्रद्धालुओं से चर्चा की। इस दौरान पंडित विनय मिश्रा, समीर शुक्ला सहित अन्य ने यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसादी का वितरण किया। इसके अलावा भगवान शिव और भगवान विष्णु के इस हरि-हर मिलन के साक्षी हजारों श्रद्धालु बने। इस हरि-हर मिलन को देखने के लिए देश भर से श्रद्धालु धाम पहुंचे थे। हरि-हर मिलन की यह परम्परा वैष्णव और शैव संप्रदाय के समन्वय और सौहार्द का प्रतीक है।

विठलेश सेवा समिति मे मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि रविवार को बैकुंठ चतुर्दशी पर सुबह ही श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर से बाहर सडक़ तक पहुंच गई थी। वहीं मंदिर की ओर आने वाले मार्ग में वाहनों की कतार लगने से जाम की स्थिति बनी रही। बाहर से आए श्रद्धालुओं ने यहां पर पूजा-अर्चना के बाद भगवान को दूध और जल अर्पित कर गंतव्य की ओर रवाना गए। शाम को मंदिर परिसर में भव्य आतिशबाजी की गई।

उन्होंने बताया कि सनातन धर्म में देव दीपावली का विशेष महत्व है। इस दिन देवता पवित्र नगरी काशी आते हैं। देव दीपावली के अगले दिन तिथि अनुसार कार्तिक पूर्णिमा है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान-ध्यान किया जाता है। इसके पश्चात, विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बैकुंठ चतुर्दशी को भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति होती है। वह जीवात्मा जन्म और मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है। कहा जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशी को एक दिन के लिए स्वर्ग का द्वार खुलता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है, नारद जी पृथ्वी का भ्रमण करने के बाद बैकुंठ धाम पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु को प्रणाम किया तो उन्होंने नारद जी से आने का कारण पूछा। नारद जी ने कहा कि प्रभु आप तो कृपानिधान हैं, इससे आपके प्रिय भक्त तो मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन आपके सामान्य भक्त आपकी कृपा से वंचित रह जाते हैं। इस वजह से आप कोई ऐसा मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी कृपा प्राप्त करके मोक्ष पा लें। तब भगवान विष्णु ने कहा कि हे नारद, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को जो भी मनुष्य व्रत रखकर उनकी पूजा करेगा, उसके लिए स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगे। इसके बाद श्रीहरि विष्णु ने जय और विजय को बुलाया। उन्होंने दोनों को आदेश दिया कि कार्तिक शुक्ल चतुदर्शी को स्वर्ग के द्वार खुले रखना। भगवान विष्णु ने नारद जी से कहा कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को कोई भी भक्त उनके नाम का स्मरण करके पूजा पाठ करता है तो उसे जीवन के अंत में बैकुंठ धाम प्राप्त होगा।

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करके उनका भी श्रृंगार करना चाहिए। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। भगवान विष्णु के मंदिरों में भी इस दिन दीपावली की तरह जश्न मनाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके दान-पुण्य करना चाहिए। इससे समस्त पापों का प्रायश्चित होता है। नदियों में दीपदान करने से विष्णु-लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। बैकुंठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में तालाब, नदी के तट पर दीपक जलाने चाहिए. वहीं बैठकर भगवान विष्णु को स्नान कराकर विधि विधान से पूजा अर्चना करें।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/नेहा

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