मंदसौरः पर्यूषण पर्व के दौरान रूपचांद आराधना भवन में प्रतिदिन हो रहा कल्पसूत्र का वाचन
मन्दसौर, 5 सितंबर (हि.स.)। चौधरी कॉलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में पर्युषण पर्व के दौरान प्रतिदिन प्रात: 9 से 11.30 बजे तक साध्वी विशुद्धप्रज्ञाजी म.सा. व साध्वी उर्विताश्रीजी म.सा. के मुखारविंद से कल्पसूत्र का वाचन किया जा रहा है। गुरूवार को साध्वीगणों के द्वारा भगवान महावीर के जन्म वृत्तांत के बाद प्रभुजी का जन्मोत्सव, प्रभुजी का पाठशाला गमन, महावीर नामकरण वृतांत, प्रभुजी के मन में वैराग्य, उनका दीक्षा महोत्सव का वृतांत श्रवण कराया गया।
साध्वी विशुद्धप्रज्ञाजी ने कहा कि जब भी तीर्थंकर भगवान का जन्म होता है सभी गति के जीवों को क्षणभर के लिये भी सुख अनुभव होता है जिसमें नरक गति के जीव भी शामिल है। प्रभु महावीर के जन्म के बाद 56 दिककुमारियों ने मेरू पर्वत पर ले जाकर प्रभुजी का अभिषेक किया। प्रभुंजी का रूप सौंदर्य इतना अद्भूत था कि इन्द्र व देवी देवताओं में भी उनके दर्शन की होड़ लगी थी। प्रभु ने मेरू पर्वत को अपनी पैर की ऊंगुली से कम्पायमान कर इन्द्र के मन में जो संशय था उसे समाप्त किया। राजा सिद्धार्थ ने प्रभुजी के जन्म का समाचार सुनकर दास दासियों को कई उपहार दिये। तथा उन्हें अपनी दासता से मुक्त किया। 10 दिवस तक कुण्डलपुर नगरी में प्रभुजी का जन्मोत्सव मनाया गया। प्रभुजी के जन्म के बाद राज्य के कोष में वृद्धि होने के कारण उनके पिता ने उनका नामकरण वर्धमान के रूप में किया। बाद में प्रभु महावीर का नामकरण वीर और महावीर भ्ज्ञी हुआ। प्रभु महावीर ने 30 वर्ष की आयु में दीक्षा ली। दीक्षा के पूर्व उन्होंने एक वर्ष तक अपने राज्य में जरूरतमंदों को खूब दान दिया। दिक्षा के बाद उन्होंने साढ़े बारह वर्ष तक वन में रहकर घोर तप तपस्या की तथा इसके बाद केवल ज्ञान प्राप्त किया। प्रभु महावीर का पूरा जीवन चरित्र अद्भूत है तथा श्रवण करने योग्य है।
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हिन्दुस्थान समाचार / अशोक झलोया
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