परंपरा: मप्र के बैतूल जिले के भैंसदेही की पूर्णा नदी में पालने में छोड़ते हैं बच्चों को

परंपरा: मप्र के बैतूल जिले के भैंसदेही की पूर्णा नदी में पालने में छोड़ते हैं बच्चों को
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परंपरा: मप्र के बैतूल जिले के भैंसदेही की पूर्णा नदी में पालने में छोड़ते हैं बच्चों को


बैतूल, 29 नवंबर (हि.स.)। दुनिया के साथ देश भी विज्ञान के क्षेत्र में आए दिन आगे बढ़ रहा है पर परंपराओं पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। शहर हो या गांव कई परिवारों में आज भी परंपराओं काे माना जा रहा है। बैतूल जिले के भैंसदेही में तो नदी के पानी में कलेजे के टुकड़े को छोड़कर परंपरा निभाई जा रही है। हालांकि यह परंपरा कितनी पुरानी है यह तो साफ नहीं हो सका पर ग्रामीण कहते हैं कई साल से चली आ रही है। भैंसदेही की पूर्णा नदी पर कार्तिक पूर्णिमा से 15 दिन तक चलने वाले मेले में सैकड़ों बच्चों को इसी तरह पालना में पानी में छोड़ा जाता है। इसके पीछे तर्क है कि यहां मन्नत मांगने पर संतान मिलती है। इसी वजह से इस परंपरा को पूर्ण किया जाता है।

भैंसदेही की पूर्णा नदी पर कार्तिक पूर्णिमा से 15 दिन का मेला लगा हुआ है। ग्रामीण कमलेश, राजेंद्र, चेतन बताते हैं कि मान्यता है कि जिन दंपतियों की संतान नहीं है वे यहां आकर मन्नत मांगते हैं। संतान होने के बाद नदी की बहती धारा में पालने में बच्चे को छोड़कर इस अनूठी परंपरा को निभाते हैं। पूर्णा नदी के किनारे लगने वाले इस मेले में मध्य प्रदेश के साथ ही पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के अलावा छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश से भी लोग आते हैं। संतान की मनोकामना के लिए यह भगत और भुमका ( पुजारियों) के साथ अपनी अर्जी लगा कर चले जाते है। जब भी संतान हो जाती है तब आकर पूजा अर्चना करते हैं। इसके बाद भगत इन बच्चों को मां पूर्णा के आंचल में लकड़ी के पालने में डालकर कुछ देर बहती नदी में छोड़ देते हैं। बताया जाता है रोजाना 100 या इससे ज्यादा बच्चों को नदी के पानी में छोड़ा जाता है। ग्रामीण कहते हैं कि कई साल से चली आ रही इस परंपरा में अब तक कोई दुर्घटना हुई हो ऐसा सुनने में नहीं आया है।

हिन्दुस्थान समाचार/ केशव दुबे/नेहा

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