अनूपपुर: अत्यंत रहस्यमयी है पांडव कालीन बाबामढी, संरक्षण के आभाव में विलुप्त हो रहे हैं अवशेष

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अनूपपुर: अत्यंत रहस्यमयी है पांडव कालीन बाबामढी, संरक्षण के आभाव में विलुप्त हो रहे हैं अवशेष


अनूपपुर: अत्यंत रहस्यमयी है पांडव कालीन बाबामढी, संरक्षण के आभाव में विलुप्त हो रहे हैं अवशेष


अनूपपुर, 9 मार्च (हि.स.)। जिला मुख्यालय से पांच किमी दूर व कलेक्टर बंगले से एक किमी दूर सोन नद और चंदास नदी के संगम पर स्थित बाबा मढी पहुंच मार्ग ना होने के कारण आज भी विकास और संरक्षण की प्रतीक्षा में है। यहाँ पांडव कालीन मन्दिर के बहुत से अवशेष यत्र - तत्र बिखरे पड़े हैं। यह अत्यंत रहस्यमयी है। दुर्लभ सर्पों की अनेक प्रजातियों यहाँ हैं। 2008 में इस मन्दिर की तलाश में यहाँ आए एक सिद्ध फक्कड पागल बाबा की एक आवाज पर हजारों कौवे मकर संक्रांति की खिचड़ी खाने यहाँ आ गये थे। कुछ स्थानीय जागरुक लोगों ने मन्दिर के अवशेषों को सहेजने की भरसक कोशिश की है। स्वयंसेवी समाजसेवक मनोज द्विवेदी ने जिला प्रशासन का ध्यान इस ओर आकृष्ट करते हुए मांग की है कि यदि इस ओर ध्यान दिया जाए तो इसे एक अच्छा दर्शनीय आध्यात्मिक, धार्मिक, पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किया जा सकता है।

संयुक्त जिला कार्यालय के पश्चिम की ओर कलेक्टर बंगले से लगभग एक किमी दूर सोन और चंदास के संगम स्थल पर यह दुर्लभ स्थल है। वस्तुत: दुर्भाग्यवश तरीके से यह स्थान जन प्रतिनिधियों की उपेक्षा का जीता जागता स्थल है। कर्मचारियों की कालोनी से यहाँ तक एक सीधे पहुंच मार्ग की कमी है। यहाँ अभी तक कोई पहुंच मार्ग ना होने से लोगों की आवाजाही कम है। चंदास नदी में एक छोटी पुलिया बना कर मार्ग निर्माण कर देने मात्र से यह जिला मुख्यालय का महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन सकता है।

लगभग 2008 में यह स्थान तब प्रकाश में आया जब उत्तर भारत से शतायु प्राप्त एक सिद्ध संत इस पांडव कालीन मन्दिर की तलाश में यहाँ पहुंचे। बतलाया जाता है कि लगभग दो हफ्ते जिले के अलग - अलग हिस्से में भटकने के बाद वे यहाँ मकर संक्रांति के दिन स्वयं पहुंच गये । प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार उन्होंने यहाँ खिचड़ी बनाई और उनकी एक आवाज पर आसमान में हजारों काले कौवे आ गये। उन्होंने संक्रांति की खिचड़ी खाई और चले गये। यह स्थान आज भी अत्यंत रहस्यमयी है। नागमणि युक्त सर्प और अनेक दुर्लभ जीव जन्तुओं की उपस्थिति यहाँ महसूस की गयी है। भक्तों द्वारा मन्दिर के अवशेषों को सहेजने की कोशिश की गयी है। कुछ नई प्रतिमाएं भी स्थापित की गयी हैं। श्रद्धालुगण यहाँ नियमित पूजा करते हैं। भजन, कीर्तन, भंडारा होता है। कुछ भू माफियाओं की नजर इसके आसपास की भूमि पर है। अब जिला प्रशासन से लोगों की अपेक्षा है कि इस ऐतिहासिक, धार्मिक स्थल को संरक्षित करते हुए यहाँ तक पहुंच मार्ग का निर्माण शीघ्र करवाया जाए। तब यह जिला मुख्यालय का सबसे सुन्दर पर्यटन/ पिकनिक स्पॉट बन कर उभर आएगा।

हिन्दुस्थान समाचार/ राजेश शुक्ला

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