मप्र विस चुनाव : निर्दलीय उम्मीदवारों की लोकप्रियता से पार्टी उम्मीदवार बेचैन

मप्र विस चुनाव : निर्दलीय उम्मीदवारों की लोकप्रियता से पार्टी उम्मीदवार बेचैन
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मप्र विस चुनाव : निर्दलीय उम्मीदवारों की लोकप्रियता से पार्टी उम्मीदवार बेचैन


रतलाम, 10 नवंबर (हि.स.)। रतलाम जिले की पांच विधानसभाओं में से चार विधानसभाओं में निर्दलीय उम्मीदवारों की लोकप्रियता के कारण दलीय उम्मीदवार बैचेन है। उनको लगता है कि यदि इसी प्रकार की लोकप्रियता और जनसंपर्क में व्यापक भीड़ निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ रही तो कही उनका चुनावी गणित बिगड़ न जाए, हालांकि इन विधानसभाओं में तीन से अधिक उम्मीदवार है, लेकिन अन्य उम्मीदवार इतना प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे है जितना प्रमुख निर्दलीय उम्मीदवार दलीय उम्मीदवारों के लिए सरदर्द बन रहे है। कई प्रकार की अफवाहे भी चुनाव रण में चल रही है। जिनका पता लग जाता है उनका खण्डन हो जाता है और जो खबरे पता नहीं चलती वे अफवाहों के रुप में वायरल हो रही है जिसका खण्डन उम्मीदवारों द्वारा ही किया जा रहा है।

जावरा में करणीेसेना के नेता चुनौती बन रहे है भाजपा और कांग्रेस के लिए

सबसे दिलचस्प मुकाबला जावरा विधानसभा क्षेत्र में देखने में आ रहा है, जहां भाजपा के वर्तमान विधायक डा. राजेन्द्र पाण्डेय, कांग्रेस प्रत्याशी वीरेन्द्रसिंह सोलंकी से मुकाबला कर रहे है। मुल रूप से यह आलोट के निवासी है। चूंकि आलोट अनुसूचित जाति आरक्षित विधानसभा क्षेत्र है इसलिए वे काफी दिनों से जावरा विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय है । वे कांग्रेस के वर्षों पुराने नेता हिम्मत श्रीमाल की उम्मीदवारी हाईकमान से निरस्त करवाकर स्वयं उम्मीदवार बनने में सफल हो गए। उन्होंने जातीय समीकरण के आधार पर चंद महिनों में ही लोकप्रियता हासिल कर ली और अब वे भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दे रहे है लेकिन इन दोनों के बीच राजपूत समाज के ही नेता जीवनसिंह शेरपूर दम खम से चुनाव लड़ रहे है। वे करणीसेना के प्रादेशिक नेता है और क्षेत्र के साथ ही आसपास जिलों में इनकी अच्छी खासी पकड़ है। नामांकन रैली में उनके साथ काफी भीड़ देख के लोग चौक गए थे और अब जनसम्पर्क में भी उनके साथ अच्छी खासी संख्या दलीय उम्मीदवारों के लिए चिंता का कारण बन गई है। यह भी कहा जाता है कि कांग्रेस और भाजपा के नाराज नेता भी अप्रत्यक्ष रुप से उनकी मदद कर रहे है। पिपलौदा के एक वरिष्ठ नेता जो कभी भाजपा के दिग्गज नेता माने जाते थे वे जीवनसिंह शेरपूर के साथ नजर आ रहे है। इससे पिपलौदा क्षेत्र में उनकी पकड़ बन गई है। आगे क्या स्थिति बनती है और ऊंट किस करवट बैठता है यह त्यौहार के बाद होने वाले चुनावी माहौल में पता लगेगा।

आलोट में दो पूर्व सांसदों और वर्तमान विधायक के बीच मुकाबला

आलोट विधानसभा में भी कुछ ऐसा ही नजारा लोगों को देखने को मिल रहा है। यहां क्षेत्र के पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू कांग्रेस का टिकिट न मिलने पर बागी उम्मीदवार के रुप में चुनाव मैदान में है। उनके सामने कांग्रेस के वर्तमान विधायक मनोज चावला है और भाजपा से इसी क्षेत्र के पूर्व सांसद रहे डा. चिंतामणी मालवीय चुनाव मैदान में है। दो पूर्व सांसदों के बीच कांग्रेस प्रत्याशी मनोज चावला का मुकाबला बड़ा दिलचस्प होता जा रहा है। यहां भाजपा के लिए यह फायदे की बात है कि भाजपा के बागी रमेश मालवीय ने भाजपा प्रत्याशी डा. मालवीय के समर्थन में अंतिम समय में नामांकन वापस ले लिया। इससे भाजपा प्रत्याशी की बहुत बड़ी चिंता तो दूर हो गई लेकिन फिर भी उन्हें भाजपा के कतिपय नेताओं के भीतरघात का खतरा उठाना पड़ सकता है,हालांकि घोषित रुप में विरोध के कोई स्वर उभर नहीं रहे है। कांग्रेस उम्मीदवार के सामने प्रेमचंद गुड्डू का चुनाव लडऩा बहुत बड़ी चुनौती है, क्योकि श्री गुड्डू क्षेत्र के पूर्व सांसद है और उनकी पकड़ भी सम्पूर्ण क्षेत्र में है। चावला के लिए केवल एक ही बात पक्ष में है कि दोनों ही उम्मीदवार बाहरी है एक उज्जैन के है तो एक इंदौर के है। ऐसे में कई कांग्रेसी यह कह रहे है कि दोनों उम्मीदवार बाहरी होने से स्थानीय उम्मीदवार को पुन: मौका दिया जाए। आलोट संसदीय क्षेत्र का दुर्भाग्य रहा है कि यहां अक्सर बाहर के ही उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे है । चाहे वह थावरचंद गेहलोत हो ,जितेन्द्र गेहलोत हो, मनोहर ऊंटवाल हो या कांग्रेस की श्रीमती लीला चौधरी रही हो ये सभी आलोट से बाहर के निवासी रहे है। फिर भी इन्हें आलोट विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व करने का मौका मिला।

रतलाम ग्रामीण में दो पूर्व अफसरों और एक किसान के बीच मुकाबला

रतलाम ग्रामीण विधानसभा में भी त्रिकोणात्मक संघर्ष दिलचस्प बनता जा रहा है। कोई भी यह कहने की स्थिति में नहीं है कि इस विधानसभा क्षेत्र में किसका पलड़ा भारी है। कांग्रेस उम्मीदवार लक्ष्मणसिंह डिंडोर जनपद के अधिकारी रहे है इसलिए इनकी पकड़ इस क्षेत्र में है। भाजपा के उम्मीदवार मथुरालाल डामोर है जो पूर्व में विधायक रह चुके है। सहज और सरल होने के कारण क्षेत्र में लोकप्रिय है और इन दोनों उम्मीदवारों के सामने जयस के डा. अभय ओहरी है जो शासकीय चिकित्सक रहकर चुनाव मैदान में उतरे है। व्यवसाय से चिकित्सक होने के कारण इनकी लोकप्रियता भी क्षेत्र में है और विगत कई वर्षों से यह आदिवासी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरना चाहते थे। कांग्रेस से टिकिट न मिलने से यह जयस से चुनाव लड़ रहे है। यह भी कांग्रेस और भाजपा दोनों दलिय उम्मीदवारों के लिए चुनौती बने हुए है। इनके रहते हुए कोई यह कहने की स्थिति में नहीं है कि किसका पलड़ा भारी है ?

सैलाना में वर्तमान और पूर्व विधायक के बीच जयस उम्मीदवार चुनौती बने

सैलाना विधानसभा क्षेत्र में भी कई उम्मीदवार है लेकिन यहां भी त्रिकोणात्मक संघर्ष भाजपा प्रत्याशी पूर्व विधायिका श्रीमती संगीता चारेल, कांग्रेस प्रत्याशी विधायक हर्षविजय गेहलोत के साथ ही जयस के कमलेश डिंडोर के बीच मुख्य मुकाबला है। प्रारंभ में लगता था कि चारेल और गेहलोत के बीच सीधा संघर्ष होगा लेकिन कमलेश डिंडोर के मैदान में आने और जयस के युवा कार्यकर्ताओं का सहयोग मिलने के कारण यह भी दोनों उम्मीदवारों के लिए चुनौती बन गए है। हाल ही में कुछ स्थानों पर इनके जनसंपर्क पर उमड़ी भीड़ ने इन उम्मीदवारों को बेचेन कर दिया है। भाजपा ने पूरी ताकत इस क्षेत्र में लगा दी है तो वही कांग्रेस प्रत्याशी भी जो जीत के प्रति आश्वस्त थे अब चिंतित नजर आ रहे है । त्यौहार के बाद ही स्पष्ट परिदृश्य नजर आएगा कि इन तीनों में किसका पलड़ा भारी है।

फिलहाल इन चारों विधानसभा क्षेत्रों में त्रिकोणात्मक संघर्ष के कारण ऊंट किस करवट बैठेगा यह अंदाज लगाना कठिन है। सब अपने-अपने तरीके से संभावित चुनाव परिणाम का आंकलन कर रहे है। अखबारी नजरीये से भी अभी इन विधानसभा सीटों की स्थिति स्पष्ट नहीं है।

हिन्दुस्थान समाचार/ शरद जोशी

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