अनूपपुर: गोडी कला को जीवित रखने असतित्व की लडाई लडती आशा, मेहनत का नहीं मिलता मेहताना
अनूपपुर, 22 दिसंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के विकाशखंड पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के बम्हनी गांव की रहने वाली पारंपरिक गोंड कला को जीवित रखने वाली आशा मरावी अभावों के बीच भी गोंडी कला की जीवित रखे हुए हैं। गरीब आदिवासी परिवार की आशा स्नातक कर रही है और गोंडी कला से आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रही हैं।
मेहनत का मेहताना नहीं मिलता
जिले में गोंड जनजाति की प्राचीनतम गोंडी कला अंतिम सांसें गिन रहा है,गोंडी कला को रंग देने वाली आशा मरावी के बनाये चित्र (पेंटिग्स) को कद्रदान नहीं मिल रहे हैं। जो उन्हें उचित सम्मान दे सकें। गोंडी कला में पारंगत आशा मरावी पारंपरिक गोंड़ी कला के जरिए आत्मनिर्भर होने का प्रयास कर रही है, लेकिन उनकी बेशकीमती गोंडी चित्र के कद्रवान नहीं होने से मेहनत से बनाये गये चित्रों का मेहताना नहीं मिलता, महज 70 रुपए मिलते हैं, जो गोंडी कला को ही नहीं, आशा मरावी को जीवित रखने के लिए नाकाफी हैं।
प्रकृति के प्रति सम्मान झलकता आशा चित्रों में
आशा मरावी द्वारा पांरपरिक गोंडी शैली में बनाए चित्रों में जंगलों की आत्मा, आदिवासी जीवन और प्रकृति के प्रति सम्मान झलकता है, लेकिन कद्रदानों की कमी के वजह से उन्हें मजबूरी में पेंटिंग्स को बेहद कम दामों पर बेचना पड़ता है. यह एक कलाकार के लिए ही नहीं, बल्कि उसकी कला और आदिवासी संस्कृति पर गहरी चोट करते हैं. गोंड जनजाति की प्राचीन लोक कला गोंड़ी में पेड़, पशु, पक्षी, नदी और पर्वत जीवन के प्रतीक माने जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती यह कला बताती है कि इंसान और प्रकृति का रिश्ता अटूट है। आशा मरावी भी अपनी गोंडी कला से निर्मित चित्र यही संदेश देती है।
गोंडी कला को पहचान दिलाने की आशा
गोंडी कलाकार आशा मरावी ने बताया कि उसने मध्य प्रदेश के कला एवं संस्कृति विभाग, आदिवासी विकास विभाग और जिला प्रशासन से उसकी कला को उचित पारिश्रमिक की व्यवस्था करने की मांग की है, ताकि गोंडी कला को नई पहचान दिलाने अपना योगदान कर सके।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश शुक्ला

