पाश्चात्य संस्कृति के सम्बोधन हमारी संस्कृति को पहुंचा रहे नुकसानः उमेशनाथ महाराज

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पाश्चात्य संस्कृति के सम्बोधन हमारी संस्कृति को पहुंचा रहे नुकसानः उमेशनाथ महाराज


- कालिदास समारोह में शोध संगोष्ठी आयोजित

उज्जैन, 03 नवंबर (हि.स.)। राज्य सभा सांसद बालयोगी उमेशनाथ महाराज ने कहा कि भारत की संस्कृति मातृदेवो भव, पितृदेवो भव के भाव से ही जीवित रह सकती है। पाश्चात्य संस्कृति के सम्बोधन हमारी संस्कृति को नुकसान पहुँचा रहे हैं। हमें सजग रहना चाहिए कि हमारी आध्यात्मिक सभ्यता को पाश्चात्य सभ्यता न समाप्त कर दें। हम उस नगरी में निवास करते हैं, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने 64 दिनों में 64 कलाओं को सीखा था।

बालयोगी उमेशनाथ महाराज सोमवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन में आयोजित 67वें अखिल भारतीय कालिदास समारोह- 2025 के अंतर्गत आयोजित शोध संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। प्रारम्भ में स्वागत व्यक्तव्य कालिदास संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ. गोविन्द गन्धे ने दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित ने की। विशिष्ट अतिथि के रुप में विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ. शैलेन्द्र पाराशर उपस्थित थे। संचालन डॉ. अखिलेश कुमार द्विवेदी ने किया।

शोध संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में कुल दस शोध पत्र पढ़े गये। कामिनी सोनी, बिलासपुर छत्तीसगढ कुमारसम्भवम् में आदर्श परिवार चिन्तन, उषाराणी सङ्का, तिरुपति आन्ध्रप्रदेश, अभिज्ञानशाकुन्तलम् में स्वभाव विमर्श, मुकेशचन्द्र भाला, उज्जैन, रघुवंशम् में स्वभाव विमर्श, डॉ. प्रमिला मिश्रा, चित्रकूट, विक्रमोर्वशीयम् में आदर्श परिवार चिन्तन, डॉ. अखिलेशकुमार द्विवेदी, उज्जैन, अभिज्ञानशाकुन्तलम् में संस्कृति विमर्श, राहुल कुमार दुबे, दमोह, रघुवंशम् में आदर्श परिवार चिन्तन, शुभम पाठक, पन्ना, रघुवंशम् में संस्कृति विमर्श, डॉ. काकुल सक्सेना, अभिज्ञानशाकुन्तलम् में स्वात्म गौरव भाव विमर्श, डॉ. अरुण कुमार पाण्डे, बस्ती, रघुवंशम् में संस्कृति विमर्श पर शोध पत्र प्रस्तुत किये।

महाकवि कालिदास भारतीय संस्कृति के स्थायी राजदूत

समारोह में व्याख्यानमाला के अन्तर्गत मुख्य अतिथि के रुप विचार व्यक्त करते हुये विभाष उपाध्याय ने कहा कि महाकवि कालिदास भारत के स्थायी राजदूत है। यदि भारत के विचार सम्पूर्ण विष्व को प्रेषित करना है। तो कालिदास के अतिरिक्त अन्य कोई माध्यम हो ही नहीं सकता।

सारस्वत अतिथि नईदिल्ली के प्रो. देवेन्द्र मिश्र ने कहा कि कालिदास ने वेद के आलोक में अपने विचार व्यक्त किये हैं। मुख्य वक्ता कुरुक्षेत्र के प्रो. राजेष्वर मिश्र ने कहा कि कालिदास की दृष्टि में सम्पूर्ण विष्व परिवार है। वे पशु, पक्षि, वृक्ष-लताओं को भी अपने परिवार का सदस्य ही मानते हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन में महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. शिवशंकर मिश्र ने कहा कि समग्रता एवं सम्पूर्णता का भाव ही परिवार को मूलाधार है। इसी को सहेजना होगा।

सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्तर्गत अनन्या गौड़, बैंगलोर, कथक नृत्य, अमिता खरे, भोपाल, नृत्य नाटिका ‘शकुन्तला’, एकता पोद्दार, उज्जैन, नृत्य नाटिका ‘भोला पार्वती को ब्याह’ ने प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रथम कौशिक आई.ए.एस., प्रशासक महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति, उज्जैन, अध्यक्ष, रूप पमनानी, केन्द्रीय समिति सदस्य उपस्थित थे।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

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