मप्रः छिंदवाड़ा में जहरीले कफ सीरप से बीमार बच्चों के इलाज पर 1.40 करोड़ खर्च, छह दवा कंपनियों पर हुई कार्रवाई

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मप्रः छिंदवाड़ा में जहरीले कफ सीरप से बीमार बच्चों के इलाज पर 1.40 करोड़ खर्च, छह दवा कंपनियों पर हुई कार्रवाई


भोपाल, 04 दिसम्बर (हि.स.)। मध्य प्रदेश में दूषित कफ सिरप से बच्चों की मौत के मामले में सरकार ने इलाज और राहत कार्यों पर करीब एक करोड़ 40 लाख रुपये खर्च किए हैं, जबकि संदिग्ध दवाओं की वैज्ञानिक जांच के लिए नमूने तमिलनाडु की प्रयोगशालाओं को भेजे गए हैं। यह जानकारी उप मुख्यमंत्री एवं लोक स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने गुरुवार को विधानसभा के शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन प्रश्नकाल के दौरान कांग्रेस विधायक के प्रश्न के जवाब में दी।

विधानसभा में कांग्रेस विधायक आतिफ अकील ने प्रश्नकाल में 1 अप्रैल 2021 से 30 जून 2025 के बीच प्रदेश में लिए गए अमानक दवाओं के सैंपल और उनसे जुड़ी कार्रवाई का विवरण मांगा था। उन्होंने पूछा था कि जांच में शामिल 229 दवाओं में किन कंपनियों के कफ सिरप घटिया पाए गए और उनकी बिक्री व वितरण पर क्या प्रतिबंध लगाया गया। इसके साथ ही उन्होंने 2017 से 2022 के बीच केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित 518 दवाओं के बावजूद जिला स्तर पर स्थानीय टेंडर के जरिए करीब 23 लाख रुपये की खरीदी पर भी सवाल उठाया।

उप मुख्यमंत्री शुक्ल ने बताया कि जहरीला कफ सिरप पीने से जिन बच्चों की मौत हुई या जो गंभीर रूप से बीमार हुए, उनके परिजनों को 85 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया है। वहीं, प्रभावित बच्चों के इलाज और दवाओं के खर्च के एवज में राज्य सरकार ने 1 करोड़ 40 लाख रुपये खर्च किए। उप मुख्यमंत्री ने कहा कि कोल्ड्रफ सिरप के अमानक होने की सूचना प्राप्त होते ही उसका विक्रय तत्काल प्रभाव से रोका गया। बच्चों की दु:खद मृत्यु की जिम्मेदारी तमिलनाडू राज्य स्थित श्रीसन फार्मा की मूल रूप से है, जिसकी निगरानी का दायित्व तमिलनाडू सरकार के औषधि विभाग का था। मंत्री ने कहा कि अब राज्य औषधि नियंत्रण विभाग द्वारा दवा कंपनियों की नियमित और कठोर निगरानी की जाएगी ताकि इस तरह की लापरवाही से भविष्य में किसी मासूम की जान न जाए।

तमिलनाडु की कंपनी पर लापरवाही का आरोप

सरकार ने बताया कि प्रारंभिक जांच में बच्चों की मौत के लिए तमिलनाडु की एक दवा कंपनी श्रीसन फार्मा की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। इसके बाद 4 सितंबर 2025 के बाद पूरे प्रदेश में दवा निर्माण इकाइयों और बाजार में उपलब्ध दवाओं की पुनः जांच शुरू कराई गई। अमानक दवाएं बनाने वाली कंपनियों पर कार्रवाई करते हुए मेसर्स ऐडकॉन लैब (नेमावर) का दवा निर्माण लाइसेंस निरस्त किया गया। इसके अलावा मेसर्स सेजा फार्मूलेशन और मेसर्स विशाल फार्मास्युटिकल्स (इंदौर) को कारण बताओ नोटिस जारी कर उनका निर्माण कार्य रुकवाया गया। मेसर्स सैमकेम, मेसर्स विलकर रेमेडीज (इंदौर) और शील केमिकल इंडस्ट्रीज (ग्वालियर) को भी नोटिस देकर उत्पादन पर रोक लगाई गई।

ये दवाएं पाई गईं अमानक

जांच के दौरान जिन दवाओं के नमूने गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे, उनमें प्रमुख रूप से कोल्ड रिफ सिरप, रिलाइफ सिरप, रेस्पिफ्रेश टी आर सिरप, कोल्डरिफ सिरप, हेप्साडिन सिरप, हेप्साडिन सिरप, चिटेम एमडी, फेरस एस्कॉर्बेट टैबलेट और एल्बेंडाजोल टैबलेट शामिल है।

डीपीसी को निलंबन से बचाने वाले अधिकारियों के खिलाफ होगी कार्रवाई

इधर, विधानसभा में कांग्रेस विधायक नारायण सिंह पट्टा ने मंडला जिले में डीपीसी अरविंद विश्वकर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और कार्रवाई में देरी का मुद्दा उठाया। उन्होंने मंत्री से सवाल किया कि तीन महीने तक निलंबन क्यों लंबित रहा और दोषियों को संरक्षण देने वाले अधिकारी कौन हैं। साथ ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस बालिका छात्रावास में 37 वर्ग मीटर में 50 छात्राओं के रहने की समस्या उठाते हुए नए हॉस्टल निर्माण की मांग की।

स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने स्वीकार किया कि कार्रवाई में देरी हुई है, लेकिन डीपीसी को हटाकर अन्य काम में लगाया जा चुका है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में आरोपी को अपनी बात रखने का अवसर दिया जाता है और जांच पूरी होने पर सख्त कार्रवाई होगी। मंत्री ने स्पष्ट किया कि निलंबन में देरी के लिए जिम्मेदार मंत्रालय के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने बताया कि नए छात्रावासों के निर्माण का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है और जहां भवन नहीं हैं, वहां किराए के बेहतर भवन उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

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