कानून हमारी सोच, आचरण और व्यवहार में भी परिलक्षित चाहिएः जस्टिस सुनहरे
झाबुआ, 9 अप्रैल (हि.स.)। विधिक साक्षरता का अर्थ केवल कानून जानना नहीं, बल्कि उसे समझना, उसका पालन करना और अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति सजग रहना भी है। कानून केवल किताबों में नहीं होता, वह हमारी सोच, आचरण और व्यवहार में भी परिलक्षित होना चाहिए। उक्त विचार जस्टिस सुभाष सुनहरे ने शासकीय पॉलिटेक्निक महाविद्यालय झाबुआ में बुधवार को आयोजित विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर की अध्यक्षता करते हुए वहां मौजूद छात्रों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
शिविर में मौजूद छात्रों को दिए अपने संबोधन में जस्टिस सुनहरे ने नशे के दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए उन्हें आगाह किया कि नशा उन्मूलन केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य का विषय नहीं है, बल्कि यह समाज के स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है। बहुत से छात्र जो घर से दूर रहते है, वे नशा करने के आदी हो जाते है, परिणामस्वरूप यह नशे की लत उनकी सोच, क्षमता और भविष्य को नष्ट करने लगती है, इसलिए सावधानी पूर्वक हमेशा नशे से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा यही सच्ची जागरूकता है।
शिविर में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव शिवकुमार डावर ने आईटी एक्ट विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि साइबर अपराधों की बढ़ती घटनाऐं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, ऐसे में जरूरी है कि कि इंटरनेट का उपयोग सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। छात्रों को संबोधित करते हुए डावर ने फिशिंग, हैकिंग और सोशल मीडिया धोखाधड़ी से बचने के उपाय बताए और कहा, डिजिटल युग में व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा हर नागरिक की जिम्मेदारी है। शिविर में जिला विधिक सहायता अधिकारी जयदेव माणिक ने यातायात नियमों और संवैधानिक अधिकारों पर चर्चा की, जबकि लीगल एड डिफेंस अधिवक्ता विश्वास शाह ने लीगल एड डिफेंस योजना की जानकारी के साथ ही अन्य कानूनों की भी जानकारी दी। शिविर में महाविद्यालय के प्राचार्य गिरिश गुप्ता सहित महाविद्यालयीन छात्र मौजूद रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / उमेश चंद्र शर्मा

