श्रावण मास शिवभक्ति, साधना और प्रकृति के संतुलन का प्रतीक : सर्राफ

WhatsApp Channel Join Now
श्रावण मास शिवभक्ति, साधना और प्रकृति के संतुलन का प्रतीक : सर्राफ


रांची, 15 जुलाई (हि.स.)। श्रीकृष्ण प्रणामी सेवा-धाम ट्रस्ट एवं विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग की संयुक्त पहल पर गुरूवार को रांची में एक विशेष धार्मिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बतौर मुख्य वक्ता विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने श्रावण मास के धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में श्रावण मास केवल पूजा-पाठ का समय नहीं है, बल्कि यह मास भक्ति, तपस्या, संयम और प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्व का भी प्रतीक है। भगवान शिव को समर्पित यह मास जीवन में आध्यात्मिक अनुशासन और संतुलन का संदेश देता है।

सर्राफ ने बताया कि पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला तो भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण कर ब्रह्मांड की रक्षा की। तभी से शिव पर जल अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई। उन्होंने कहा कि श्रावण सोमवार को व्रत रखकर शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र आदि अर्पित करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह मास न केवल मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है, बल्कि हरियाली, जल संरक्षण और वृक्षारोपण जैसी पर्यावरणीय चेतना को भी प्रोत्साहित करता है।

संगोष्ठी के अंत में शिव तांडव स्तोत्र, रुद्राष्टाध्यायी और शिवमहापुराण के मंत्रों का सामूहिक पाठ किया गया। आयोजन के अंत में सभी उपस्थित श्रद्धालुओं ने श्रावण मास में संयम, सेवा और शिवभक्ति के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। मौके पर कई लोग मौजूद थे।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / Manoj Kumar

Share this story