पड़हा जतरा आदिवासी संस्कृति की पहचान, इसे बचाये रखना हमारा कर्त्तव्य: कालीचरण मुंडा

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पड़हा जतरा आदिवासी संस्कृति की पहचान, इसे बचाये रखना हमारा कर्त्तव्य: कालीचरण मुंडा


पड़हा जतरा आदिवासी संस्कृति की पहचान, इसे बचाये रखना हमारा कर्त्तव्य: कालीचरण मुंडा


खूंटी, 16 जून (हि.स.)। खूंटी सदर प्रखंड के डुंगरा गांव में रविवार को पड़हा जतरा सह सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में सांसद कालीचरण मुंडा शामिल हुए। सम्मेलन को संबोधित करते हुए सांसद कालीचरण मुंडा ने कहा कि पड़हा व्यवस्था मुंडा मानकी व्यवस्था आदि युग का है। उस युग में संविधान नहीं था, सरकार भी नहीं थी। पड़हा के राजा, गांव के मुंडा, पाहन के हाथों में समाज संचालित करने का नियम-कानून, कायदा था। उन्हीं के द्वारा शासन चलता था और अच्छे ढ़ंग से चलता था। पड़हा में राजा-महाराजा व्यवस्था को आज भी आप निभा रहे हैं।

उन्होंने कहा हमारी सांस्कृति, पड़हा व्यवस्था और नियम कानून थे, उसे नहीं छोड़ना है। उन्होंने कहा कि जो पड़हा जतरा लगता है, उसमें हमें अपने परम्परागत दैविक स्थल, पूजा पाठ, वेशभूषा के साथ नृत्य व संस्कृति को बचानें का मौका मिलता है। उन्होंने कहा कि धार्मिक परम्परा, संस्कृति और रीति-रिवाज ही हमारी पहचान है। संस्कृति और रीति-रिवाज को बचाये रखना हम सभी का कर्तव्य है।

सांसद ने कहा कि आदिवासियों की पड़हा व्यवस्था त्रिस्तरीय सामाजिक व्यवस्था की धरोहर है। इसे अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए आदिवासी समाज को एकजुट होना होगा। आदिवासियों की रक्षा करके ही विश्व को बचाया जा सकता है। सदियों से चली आ रही इस पड़हा जतरा में लोगों की उपस्थिति इस बात को दर्शाता है, कि आज भी समाज के लोग अपनी धरोहर की रक्षा के लिए गंभीर है। सम्मेलन में दयामनी बारला, महादेव मुंडा, पीटर मुंडू, विजय कुमार स्वांसी आदि उपस्थित थे।

हिन्दुस्थान समाचार/ अनिल

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