झारखंड सरकार का प्रति व्यक्ति आय निर्धारण का फॉर्मूला गलत: राधाकृष्ण किशोर

झारखंड सरकार का प्रति व्यक्ति आय निर्धारण का फॉर्मूला गलत: राधाकृष्ण किशोर
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झारखंड सरकार का प्रति व्यक्ति आय निर्धारण का फॉर्मूला गलत: राधाकृष्ण किशोर


पलामू, 7 मार्च (हि.स.)। छतरपुर के पूर्व विधायक राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि राज्य सरकार ने विधानसभा में 2023-24 का झारखंड आर्थिक सर्वेक्षण प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए बताया है कि वर्ष 2023-24 में वर्तमान मूल्य पर राज्य के प्रत्येक व्यक्ति की आय 98649 रूपए होने का अनुमान है। झारखंड के प्रत्येक व्यक्ति की आय 98649 रुपये बताया जाना वास्तविक नहीं है।

पलामू ऐसे और कई जिले हैं, जो सुखाड़, बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। पलामू, चतरा, गढ़वा, लातेहार, लोहरदगा जिले के सुदूरवर्ती गांव की महिलाएं जंगली कंद मूल बेचकर गुजारा करती हैं। झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था खेती, दुग्ध तथा मछली उत्पादन पर निर्भर है। वर्षा के अभाव में विगत पांच वर्षों से कृषि उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। मछली, अंडे, मांस और दूग्ध का उत्पादन आवश्यकता से बहुत ही कम है।

राष्ट्रीय औसत 410 ग्राम के विरूद्ध झारखंड में प्रति व्यक्ति 152 ग्राम ही दूग्ध उपलब्ध है। झारखंड में गरीबी की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खाद्य एवं पोषण सुरक्षा नीति के तहत 70 लाख परिवारों को शामिल किया गया है। ऐसी स्थिति में गरीबों की आय 98649 रूपए प्रति वर्ष होना कदापि संभव नहीं है।

नीति आयोग द्वारा बहुउद्धेश्यीय गरीबी के लिए निर्धारित 12 मापदंड पोषण, बालमृत्यु दर, मातृत्व स्वास्थ्य, शुद्ध पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर आदि क्षेत्र में भी झारखंड पीछे है। अधिकतर महिलाएं और बच्चे कुपोषण तथा खून की कमी से प्रभावित हैं।

श्री किशोर ने कहा कि निःसंदेह झारखंड में घोर आर्थिक विषमता व्याप्त है। एक तरफ उद्योगपतियों, पूंजिपतियों, व्यवसायिकों और वेतनभोगियों की आय है तो दूसरी ओर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की आय है। दोनों में व्यापक अंतर है। प्रति व्यक्ति आय का निर्धारण उस राज्य में रहने वाले सभी लोगों की आय को जोड़कर राज्य की कुल जनसंख्या से विभाजित कर निर्धारित किया जाता है।

सरकार के इस फॉर्मूले से राज्य के बड़े उद्योगपतियों, पूंजीपतियों की आय, गांव में रहने वाले किसान मजदूरों की वार्षिक आय से कैसे मेल खा सकती है। उक्त फार्मूला के आधार पर झारखंड में रहने वाले प्रत्येक व्यक्तियों की आय को एक सामान निर्धारित करना गरीबों का मजाक उड़ाने जैसा है।

इस तरह हो निर्धारण

पूर्व विधायक ने कहा कि झारखंड सरकार को चाहिए कि प्रति व्यक्ति आय के निर्धारण के लिए दशकों से चली आ रही आंकड़ों की बाजीगरी को छोड़कर झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की वास्तविक आय जानने के लिए माइक्रो सर्वे (सूक्ष्म) कराये, ताकि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की प्रति वर्ष वार्षिक आय की वास्तविक स्थिति सुनिश्चित हो सके। बता दें कि खाद्य सुरक्षा के तहत राज्य की 2.79 करोड़ जनता को खाद्यान की आपूर्ति हो रही है।

हिन्दुस्थान समाचार/दिलीप

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