जीने का सहारा बना चकवड़, कई घरों का जलता है चूल्हा-बुझती है पेट की आग

जीने का सहारा बना चकवड़, कई घरों का जलता है चूल्हा-बुझती है पेट की आग
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जीने का सहारा बना चकवड़, कई घरों का जलता है चूल्हा-बुझती है पेट की आग


पलामू, 16 दिसंबर (हि.स.)। पांकी विधानसभा क्षेत्र में कृषि कार्य के लिए पर्याप्त वर्षा नहीं होने के कारण भदई व अगहनी फसल समाप्त हो गई है। वहीं रबी फसल पर भी संकट है। फलस्वरूप पेट की आग बुझाने के लिए गरीब परिवार की महिलाएं चकवड़ काट कर जमा कर रही हैं।

चकवड़ काट रहे महिला ग्रामीण ने शनिवार को बताया कि इस वर्ष खेती नहीं हुई है। अकाल पड़ गया है। रोजी-रोजगार का कोई साधन नहीं है। ऐसे में पेट भरने के लिए कुछ तो उपाय करना होगा नहीं तो भूखे मरना पड़ेगा। ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि दिन भर चकवड़ काटकर जमा करती हूं। उसे सूखा व पीटकर उसका दाना निकालती हूं और बाजार में सेठ साहूकार के पास 19 से 20 रुपये प्रतिकिलो की दर से बेचते हैं, जिससे हम सभी के घर का चूल्हा जल रहा है।

महिलाओं ने बताया कि दिन भर चकवड़ काटकर डेढ़ से दो किलो चकवड़ का दाना प्राप्त होता है। इस वर्ष पानी के अभाव के कारण चकवड़ भी बहुत कम उगे हैं। अधिकतर चकवड़ के पौधों में फल भी नहीं लगा है, जिसके कारण काफी मेहनत कर चकवड़ भी जमा करना पड़ रहा है।

ग्रामीण महिलाओं ने यह भी कहा कि इस अकाल में भी सरकार हम गरीबों को जीने खाने के लिए कोई रोजगार उपलब्ध नहीं करा रही है। रोजगार मिलता तो खेत क्यारी आदि जगहों पर चकवड़ जमा करने के लिए भटकना नहीं पड़ता। फिलहाल जीने का सहारा चकवड़ बचा है। इन दिनों क्षेत्र में बड़े पैमाने पर चकवड़ काटकर जमा करने की होड़ गरीब महिलाओं में मची हुई है।

हिन्दुस्थान समाचार/दिलीप

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