तपकरा गोलीकांड की 23वीं बरसी पर शहीदों को दी गयी श्रद्धांजलि
-विस्थापन के खिलाफ हमें मिलजुल कर संघर्ष करना होगा :दयामनी बारला
खूंटी, 2 फ़रवरी (हि.स.)। सरकार की नीतियों के कारण आज आदिवासी समाज के समक्ष विस्थापन का बड़ा संकट खड़ा है। लैंड बैंक, भू अर्जन कानून, धर्म विधेयक लाकर आदिवासी समाज को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इसके खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा। इसके लिए हमें मिलजुल कर संघर्ष करना होगा। ये बातें तपकरा गोलीकांड की 23वीं बरसी पर विस्थापन विरोधी आंदोलन नेता दयामनी बरला ने शुक्रवार को तपकरा बाजार टांड़ में कही।
बारला ने कहा कि आज भी राज्य के आदिवासी संविधान प्रदत्त अधिकारों की मांग के लिए राज्य में संर्घष करने को मजबूर हैं, क्योंकि कभी भी इन अधिकारों को लागू नहीं किया गया। संविधान से मिले पांचवीं अनुसूची के अधिकार के तहत जल, जंगल, जमीन पर नियंत्रण कर उसे संचालित करने और खुद को विकसित करने के साथ-साथ अपनी भाषा-संस्कृति के विकास का अधिकार दिया गया है, लेकिन, इन सारे प्रावधानों को सरकार ने आज तक लागू नहीं किया है।
झामुमो केंद्रीय सदस्य सुदीप गुड़िया ने कहा कि बलिदानियों की कुर्बानियों को इस क्षेत्र के लोग कभी नही भूल पाएंगे। ये जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए कुर्बान हुए। इस दौरन उलगुलान संघ संयोजक अलेस्टर बोदरा, मसीह दास गुड़िया, जिला परिषद रनिया अनिल मेनन बिरेन कंडुलना, तोरपा प्रमुख रोहित सुरीन, रनिया प्रमुख नेली डहांगा, सरना समाज की दुर्गावती ओडे़या, प्रभाकर तिर्की, रतन तिर्की, सुमित गुड़िया, कुलन पतरस आईंड सहित कई वक्ताओं ने संबोधित किया।
आदिवासियों के लिए भाजपा व कांग्रेस दोनों राजनीतिक दुश्मन है: सुबोध पूर्ति
झारखंड आंदोलनकारी सुबोध पूर्त्ति ने कहा कि वर्तमान में आदिवासी समाज कई चुनौतियां से जूझ रहा है। हमारे बलिदानियों ने हमें अधिकारों की रक्षा के प्रति सजग रहने एवं चुनौतियां से मुकाबला करने के लिए प्रेरणा दी है। आदिवासियों के लिए भाजपा व कांग्रेस दोनों बराबर के राजनीतिक दुश्मन है। झारखंड बनने के बाद झारखंड विरोधी शक्तियां सत्ता पर काबिज हुए इसके कारण झारखंडियों का सपना अधूरा रह गया। सत्ता मे आंदोलकारियों की भागीदारी सुनिश्चित नहीं हुई, जिसके कारण झारखंड राज्य काफी पीछे चला गया। हमें एकजुट होकर राज्य को विकास के रास्ते आगे ले जाने की जरूरत है।
हिन्दुस्थान समाचार/ अनिल
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