लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा को अपनों का ही नहीं मिला साथ

लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा को अपनों का ही नहीं मिला साथ
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लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा को अपनों का ही नहीं मिला साथ


खूंटी, 4 जून (हि.स.)। अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित खूंटी संसदीय सीट के लिए 13 मई को वोटरों ने अपने पसंदीदा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर दिया था। इस सीट पर इस बार भी दो पुराने प्रतिद्वंद्वियों भाजपा के अर्जुन मुंडा और कांग्रेस के कालीचरण मुंडा के बीच ही मुख्य मुकाबला था,लेकिन इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को अपने लोगों का ही साथ नहीं मिला।

भाजपा का गढ़ समझे जानेवाले खूंटी ससंदीय क्षेत्र में इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा को भाजपा नेताओं और प्रखंड से लेकर जिला तक फैली सांसद प्रतिनिधियों ने ही चुनाव में रुचि नही दिखाई। एक कार्यकर्ता ने कहा कि न तो खूंटी के विधायक नीलकंठ सिंह मुडा और न ही तोरपा के विधायक कोचे मुंडा ने चुनाव प्रचार में रुचि दिखाई। भाजपा कार्यकर्ता कहते हैं कि इस बात का पहले से ही अंदेशा था कि कांग्रेस सरना वोट में सेंधमारी कर सकती है, पर इस ओर भाजपा नेताओं ने यह कहकर चुप्पी साध ली कि यह सब तो चुनाव में होता ही है।

कार्यकर्ता आरोप लगाते हैं कि खूंटी और तोरपा विधानसभा के ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के लिए न तो विधायक पहुंचे और न ही जिला स्तरीय नेता और न मंडल स्तर के नेता। चुनाव प्रचार के लिए न तो जिलाध्यक्ष निकले और न ही अन्य पार्टी पदाधिकारी। भाजपा के पुराने कार्यकर्ता कहते हैं लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की ऐसी कुव्यवस्था कभी नहीं देखी गई थी। विधायक और जिला स्तरीय नेता सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही चुनाव प्रचार करते दिखे, लेकिन गांवों में जाने के मामले में उन्होंने उदासीनता दिखाई। जनसंघ काल के एक पुराने कार्यकर्ता नें कहा कि विधानसभा चुनाव होता, तो क्या दोनों विधायक ऐसे ही काम करते।

एक कार्यकर्ता ने कहा कि अर्जुन मुंडा की जनता से दूरी भी उनकी हार का कारण बनी। उन्होंने कहा कि अर्जुन मुडा ने क्षेत्र की जनता को कभी तरजीह नही दी। काम के लिए सैकड़ों सांसद प्रतिनिधियों की फौज खड़ी कर दी गई, लेकिन उसका कोई लाभ चुनाव मं नहीं मिला। चुनाव के दौरान मंडल और पंचायत स्तर कें कार्यकर्ताओं को कोई तरजीह नहीं दी गई। चुनाव का सारा प्रबंधन कुछ नेताओ के हाथों तक सिमट कर रह गया। तोरपा विधानसभा क्षेत्र के एक कार्यकर्ता ने कहा कि खूंटी संसदीय क्षेत्र में रौतिया जाति के वोटरों की संख्या एक लाख से अधिक है।

आदिवासी का दर्जा नहीं दिये जाने से इस समाज के लोगों में नाराजगी थी। इस बात की जानकारी भाजपा के छोटे-बड़े नेताओं को थी। इस जाति को भाजपा का परंपरागत वोटर माना जाता है, पर इस बार के चुनाव में रौतिया समाज के लोगों ने अपनी जाति की बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी सावित्री देवी को वोट देने का मन बना लिया था, लेकिन भाजपा के किसी बड़े नेता ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। फलतः वोटो का नुकसान उठाना पड़ा।

रविंद्र राय को लोकसभा के साथ खूंटी विधानसभा प्रभारी बनाने पर उठ रहे सवाल

खूंटी संसदीय सीट के लिए भाजपा की ओर से पूर्व मंत्री डॉ रविंद्र राय को खूंटी लोकसभा का प्रभारी बनाया गया था। इसके साथ ही राय को ही खूंटी विधानसभा का भी प्रभारी बना दिया गया। इस पर कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि क्या खूंटी संसदीय क्षेत्र के पांच जिलों में खूंटी विधानसभा प्रभारी के योग्य भाजपा नेताओं को मिला।भाजपा के कई नेता तो इसके लिए भाजपा के संगठन मंत्री कर्मपाल सिंह को ही जिम्मेवार मानते हैं। कुछ कार्यकर्ताओं ने तो यहां तक कहा कि भाजपा के कुछ नेता खुद को संगठन से ऊपर समझने लगे थे। इसका खमियाजा भजपा को चुनाव में भुगतना पड़ा।

हिन्दुस्थान समाचार/ अनिल

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