कश्मीर में बढ़ती ठंड के बीच फ़ेरन की मांग में भारी उछाल, देशभर में लोकप्रियता
जम्मू,, 28 दिसंबर (हि.स.)।
कश्मीर में बर्फीली ठंड बढ़ते ही पारंपरिक परिधान ‘फ़ेरन’ की मांग में ज़बरदस्त बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। स्थानीय बाज़ारों से लेकर देश के विभिन्न हिस्सों तक हाथ से बनाए गए फ़ेरन आज न सिर्फ़ गर्म कपड़ों की ज़रूरत पूरी कर रहे हैं बल्कि कश्मीरी पहचान, संस्कृति और कारीगरी के प्रतीक के रूप में नई पहचान भी बना रहे हैं। ठंड के चलते कश्मीर के बाज़ारों में टिला, आरी और सोज़नी कढ़ाई वाले खूबसूरत फ़ेरन खरीदने वालों की भीड़ उमड़ रही है।
कारीगरों के अनुसार मशीन से बने फ़ेरनों की जगह अब लोग हस्तनिर्मित डिज़ाइनों को ज़्यादा पसंद कर रहे हैं जो युवाओं के बीच एक फैशनेबल एथनिक आउटफिट के रूप में भी लोकप्रिय बन रहा है। कश्मीर की महिला कारीगरों की मेहनत इस विरासत को आगे बढ़ाने में अहम योगदान दे रही है। एक हस्तशिल्प केंद्र में काम करने वाली अफ़रोज़ा बेगम बताती हैं कि तीन दिन की मेहनत से बनने वाले एक फ़ेरन या शॉल की कीमत लगभग ₹2,500 होती है और ये काम उनका रोज़गार ही नहीं बल्कि विरासत बचाने का संकल्प भी है। स्थानीय निवासी मानते हैं कि फ़ेरन कश्मीरी पहचान की आत्मा है और इसे सिर्फ़ ‘फ़ेरन डे’ पर पहनना नहीं बल्कि नियमित रूप से हस्तनिर्मित उत्पादों को अपनाकर संस्कृति को जीवित रखना ज़रूरी है। दिल्ली, मुंबई समेत बड़े शहरों में बढ़ती मांग के चलते कई केंद्रों में एडवांस ऑर्डर पर काम चल रहा है। पारंपरिक डिज़ाइन के साथ नए रंगों का मेल, सरकारी सहयोग और युवाओं की भागीदारी ने इस कारीगरी को नया जीवन दिया है। आज फ़ेरन सिर्फ़ सर्दी से बचाने वाला परिधान नहीं बल्कि कश्मीर की विरासत, पहचान और जज्बे का प्रतीक बनकर पूरे देश में लोकप्रियता हासिल कर रहा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / अश्वनी गुप्ता

