आत्मा अमर है, पर माया में बंधी हुई है: सद्गुरु मधुपरमहंस जी

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आत्मा अमर है, पर माया में बंधी हुई है: सद्गुरु मधुपरमहंस जी


जम्मू, 1 जून (हि.स.)। साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज रखबंधु जम्मू अपने अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि हम सबने यह माना है कि शरीर के अन्त के बाद भी आत्मा नहीं मरती है। इस पृथ्वी पर रहने वाला मानव इस सिद्धांत को मान चुका है कि आत्मा अमर है। आत्मा में कोई दोष नहीं है। यह सहज है। यह चेतन है। यह आनन्दमयी है। आत्मा की उर्जा किसी भी देशकाल में कभी खत्म नहीं होती है।

आप देखते हैं कि आपके बच्चों में आपके गुण भी आते हैं, आपका रंग-रूप भी आता है। इसी तरह परमात्मा का अंश होने के कारण इसमें यह सब चीजें निहित हैं।

जब हम मनुष्य को देख रहे हैं तो इसमें आत्मा नजर नहीं आ रही है। आजकल काम, क्रोध, लोभ आदि अधिक हो गया है। यह आत्मा माया के अन्दर आ गयी, यह सब हम जानते भी हैं, इसलिए बोलते भी हैं कि क्या करें, मन माया के बीच फँसे हैं। पर आगे नहीं बढ़ रहे हैं। हमें मन और माया का समझना होगा। सब शारीरिक जीवन जी रहे हैं। कोई ऐसी ताकत है जो इंसान को केवल जगत में उलझाए जा रही है। हमें उसको जानना है।

ऐसी कौन सी चीज है, जो हमें ऐसी जिंदगी जीने के लिए विवश कर रही है। आपने कई बार देखा होगा कि लड़ाई करने से कोई लाभ नहीं है। फिर भी कर देते हैं। यानी अन्दर बैठी विरोधी ताकतें भुला देती हैं।

इसलिए साहिब कह रहे हैं कि सारा संसार अँधा है। कोई नहीं समझ पा रहा है। आखिर आत्मा तक पहुँचने का साधन क्या है। हमें आत्मा तक जाना है। हमें आत्मा की पहचान मिल रही है वो है चेतना। जो आपके शरीर में चेतना है, वो आत्मा है। यह आत्मा जड़ शरीर में बंध गयी है। जड़ शरीर और चेतन आत्मा की गठान पड़ गयी है। सभी ध्यान एकाग्र करने को बोल रहे हैं। संत भी ध्यान करना बोल रहे हैं। ध्यान क्यों करना है। वो ऐसा ही है, जैसे तिलों में सार तेल है। दूध में सार घी है, इसी तरह शरीर में सार चेतना है। हरेक आदमी ध्यान करना चाहता है। पर कुछ ऐसी ताकतें हैं जो ध्यान नहीं होने देती हैं। यह ध्यान एकाग्र का मतलब है कि एक जगह पर रहे। तन स्थिर हो जाए, मन स्थिर हो जाए, सुरति स्थिर हो जाए, निरति स्थिर हो जाए। वो एक पल कल्पांतर के बराबर है। इसलिए सुरति को संभालना है। आत्मा बंधन में है तो यह पूरा मन का खेल है। आत्मा का न भाई है, न बंधु है, न माता है, न पिता है। यह पंच भौतिक शरीर माया है। सारी इंद्रियाँ मन की सहायक हैं। ये हमेशा विषयों की तरफ आत्मा को खींचती हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा

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