भ्रष्टाचार पर जागरूकता के लिए नटरंग ने नुक्क्ड़ नाटक का मंचन किया
जम्मू, 5 नवंबर (हि.स.)। रविवार को नटरंग ने नगरोटा म्यूनिसिपल पार्क, जम्मू में नीरज कांत द्वारा लिखित और निर्देशित एक हिंदी नाटक 'घोटाला' प्रस्तुत किया। यह नाटक समाज में विशेषकर सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार के बढ़ते खतरे के बारे में युवाओं के दृष्टिकोण के बारे में था जो इसके विकास और विकास को बाधित कर रहा है।
नाटक की शुरुआत निराश युवाओं की आक्रामकता से होती है जो भ्रष्टाचार, घोटालों और बेईमानी की प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। फिर वे इस भ्रष्टाचार के लिए आम लोगों को जिम्मेदार ठहराते हैं और कहते हैं कि भ्रष्टाचार निहित तत्वों द्वारा फैलाया जाता है, जिन्हें सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों का संरक्षण प्राप्त होता है। और इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में भ्रष्टाचारियों को सत्ता में लाने के लिए आम जनता पूरी तरह से जिम्मेदार है। इस प्रकार इस भ्रष्ट व्यवस्था में सीधे तौर पर आम जनता की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित होती है। इसके बाद नाटक में दिखाया गया कि समाज और व्यवस्था में भ्रष्टाचार कैसे जन्म लेता है। एक क्रम में एक सड़क पर फल बेचने वाला सिस्टम के भ्रष्ट रखवालों का शिकार बन जाता है और बाजारों में कीमतें बढ़ जाती हैं और इसका बोझ आम जनता को उठाना पड़ता है।
एक अन्य दृश्य में बताया गया कि भ्रष्टाचार के कारण पढ़े-लिखे युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है और जो सक्षम नहीं हैं वे रिश्वत देकर नौकरियां पा रहे हैं। कुछ लोग रिश्वत देकर प्रोफेशनल कॉलेजों में प्रवेश पा लेते हैं और अच्छे अंक प्राप्त करने वाले छात्र बिना प्रवेश के रह जाते हैं जिससे वे निराशा का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में वे खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं और ऐसे में उनका झुकाव अराजक प्रवृत्ति की ओर हो सकता है। ऐसे में वे देश की प्रगति में मदद करने की बजाय अराजकता फैलाने में लग सकते हैं।
इसके अलावा एक अन्य दृश्य में बताया गया है कि रेल यात्रा के लिए आम यात्रियों को तत्काल टिकट उपलब्ध नहीं है। लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत के कारण बिचौलिए कालाबाजारी करते हैं और टिकट खरीदकर ऊंचे दामों पर बेचकर मोटा मुनाफा कमाते हैं। इस धोखाधड़ी का शिकार यात्री सतर्कता बरतता है और सतर्कता विभाग को सूचित करता है और प्रभारी अधिकारी को गिरफ्तार करवाता है। इस तरह समस्या का समाधान भी मिल जाता है। एक ओर जहां नेता चुनाव के दौरान उपहार बांटकर आम जनता को लुभा रहे हैं, इस सब में शामिल अधिकारी रिश्वत से मिले पैसे से अपने बेटे का कॉलेज में दाखिला कराता है। लेकिन उसका बेटा अपने पिता को सबक सिखाने के लिए अपने ही घर में चोरी कर लेता है। कोई भी पुलिस अधिकारी रिश्वत के बिना चोरी की रिपोर्ट दर्ज नहीं करता। इस प्रकार, उसे उस व्यक्ति के भाग्य का एहसास होता है जिसके पास रिश्वत के रूप में देने के लिए पैसे नहीं हैं। इस बात का एहसास होने पर पिता प्रतिज्ञा लेता है कि वह भविष्य में न तो रिश्वत लेगा और न ही देगा। और नाटक इस संदेश के साथ समाप्त होता है कि वे भ्रष्टाचार को ना कहेंगे और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्ध होंगे।
हिन्दुस्थान समाचार/राहुल/बलवान
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