गुरु पूर्णिमा के अवसर पर साहिब बंदगी के सद्गुरु ने संगत को किया ज्ञान से ओत-प्रोत

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गुरु पूर्णिमा के अवसर पर साहिब बंदगी के सद्गुरु ने संगत को किया ज्ञान से ओत-प्रोत


जम्मू, 21 जुलाई (हि.स.)। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने रविवार को राँजड़ी, जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि गुरु पूर्णिमा का बहुत बड़ा महत्व है। इस दिन सद्गुरु अमर लोक में सत्य पुरुष में जाकर समाता है और इस बात को इस तरह से समझें कि वहाँ से सत्य पुरुष की किरणों को लाकर शिष्य के अन्दर प्रविष्ट करता है। यह काम सद्गुरु नाम दान देते समय भी करता है। इसलिए संतों का सत्य नाम उस सब नामों से परे है, जिन नामों का सारा संसार जानता है और जपता है। यह गुप्त नाम है, जो केवल संतों के पास है। परम सत्ता की इच्छा से उस अमर लोक से संतों की भीड़ जीवों को छुड़ाने नहीं आती। केवल एक संत ही आता है। और उस सत्य नाम को, जो लिखने, बोलने या पढ़ने वाली वस्तु नहीं है शिष्य को देकर इस संसार से छुड़ाकर ले चलता है।

साहिब जी ने कहा कि सभी धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि आपके अन्दर परमात्मा है। ठिकाना मिल रहा है। उसके बाद भी आदमी परमात्मा को नहीं जान पा रहा है। यह कैसा तत्व है परमात्मा। एक छोटा बच्चा है। घर में नन्हा बालक आता है तो बच्चा पूछता है कि माँ, यह कहाँ से आया। माँ बोलती है कि बेटा, भगवान ने दिया। पूरा सिस्टम नहीं बताती है। वो जरूरी नहीं समझती है। वो समझ भी नहीं पायेगा। साहिब जी ने कहा कि कबीर साहिब इस संसार में आत्मा के देश अमर लोक से आए थे। कबीर साहिब की कई वाणियों में आता है कि वे आत्माओं को काल के जाल से छुड़ाने के लिए संसार में आए।

आदिकाल से मनुष्य परमात्मा के विषय में सोचता था। कहाँ से जल आया, कहाँ से आग आई, सृष्टि कौन बनाया। आकाश कहाँ से आया। आजतक दुनिया के लोग एकमत नहीं हो पाए हैं। सब अपने अपने राग अलापते हैं। कुछ कहते हैं कि शुरू में जल ही जल था। जल तो भाई दो गैसों का मिश्रण है। इसका मतलब क्या भगवान गैस था। नहीं। ये तो पंच भौतिक तत्व हैं। वो इनसे परे है। सब निराकार की सेवा में लगे। उस निराकार शून्य से आकाश की उत्पत्ति हुई। फिर उसी से अन्य तत्व हुए। सृजन का पूरा रहस्य आपके अन्दर भरा पड़ा है। इसलिए वैज्ञानिक भी निराकार को मानते हैं।

पर साहिब ने निराकार से परे एक अमर देश का संदेश संसार को दिया। उसी अमर लोक में सब आत्माओं का अंशी सत्य प्रभु रहता है। उन्हीं से संतमत चला और सद्गुरु की महिमा का बखान किया। पहले भी गुरु का महत्व था। पर इतना नहीं था। पर संतों ने सद्गुरु शब्द दिया। सच्चा गुरु, जो सत्य पुरुष को जानता है। संतों ने गुरु को परमात्मा से भी बड़ा बोल दिया। तर्क दिया कि परमात्मा ने तो माया में डाल दिया। पर सद्गुरु ने माया से छुड़ाकर प्रभु से मिला दिया।

हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा / बलवान सिंह

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