22 साल में पहली बार सरकार में जम्मू की भागीदारी होगी बहुत कम
जम्मू,, 12 अक्टूबर (हि.स.)। जम्मू कश्मीर में नई सरकार के गठन को लेकर उमर अब्दुल्ला ने उपराज्यपाल को 55 विधायकों के समर्थन वाला पत्र सौंप दिया है। इन 55 विधायकों में नेकां के 42, कांग्रेस के छह, माकपा, आम आदमी पार्टी के एक-एक विधायक और पांच निर्दलीय शामिल हैं। जबकि नई सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में उमर अब्दुल्ला 16 अक्तूबर को शपथ लेंगे। हालांकि इस बार की जम्मू कश्मीर विधानसभा में 51 विधायक बिलकुल नए है इनमें नेशनल कॉन्फ्रेंस के 42 में से 24, भाजपा के 29 में से 15 विधायक पहली बार विधानसभा चुनाव जीते हैं। विधानसभा में कांग्रेस के छह सदस्य हैं और इनमें से दो पहली बार विधायक बने हैं। पहली बार विधायक बनने वालों में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की युवा इकाई के प्रधान वहीद उर रहमान परा, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी के चेयरमैन सैयद अल्ताफ अहमद बुखारी को हराने वाले नेशनल कान्फ्रेंस के मुश्ताक अहमद गुरू, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तारांचद को धूल चटाने वाले निर्दलीय सतीश शर्मा, भाजपा के विक्रम रंधाावा, आम आदमी पार्टी के मेहराज मलिक व कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रमन भल्ला को हराने वाले डा नरेंद्र सिंह रैना आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
जबकि इस बार की विधानसभा में भाजपा की शगुन परिहार सबसे कम उम्र की विधायक होंगी।
वहीं अब नई सरकार के साथ साथ राज्यसभा के सदस्यों को नामित करने को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। नेशनल कॉन्फ्रेंस से जुड़े सूत्रों ने बताया कि नेकां प्रमुख डॉ फारूक अब्दुल्ला राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व करने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं।
सूत्रों ने बताया कि पार्टी अब फारूक अब्दुल्ला को राज्यसभा भेजेगी। डा फारूक अब्दुल्ला अभी सौरा, श्रीनगर से लोकसभा सांसद हैं। माना जा रहा है कि पार्टी अब उन्हें राज्यसभा भेजेगी। अगर ऐसा होता है तो फिर सौरा, श्रीनगर सीट पर उपचुनाव होंगे क्योंकि नेकां के सरकार गठन करने के साथ ही उसके पास दो राज्यसभा सदस्य नामित करने का भी अधिकार तो रहेगा जबकि भाजपा के पास भी एक सदस्य को नामित करने का अधिकार रहेगा। इसी बीच एक सदस्य और नामित होना है वो कांग्रेस से होगा या फिर भाजपा से या फिर वो भी नेकां का ही होगा इस पर कुछ भी कहना मुश्किल है क्योंकि जम्मू कश्मीर के चार राज्यसभा सदस्यों के लिए विधायकों को मतदान करना है। अब यह विधायक किसके पक्ष में मतदान करेंगे यह तो वो ही जाने। जबकि जम्मू-कश्मीर में दस वर्ष बाद नई सरकार बनने जा रही है। इसमें जम्मू संभाग की पिछले 22 वर्ष में सबसे कम भागीदारी होगी।
जम्मू संभाग की बात करें तो इसमें भी दो हिस्से हो गए हैं। इनमें चार जिले ऐसे हैं जिनका कोई प्रतिनिधि सरकार का हिस्सा नहीं होगा। वर्ष 2002 में कांग्रेस, पीडीपी और पैंथर्स पार्टी की सरकार बनी। पहले तीन वर्ष के लिए पीडीपी के मुफ्ती मोहम्मद सईद और अगले तीन साल के लिए कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद सीएम बने। सरकार के साथ 19 विधायक जम्मू संभाग के थे जबकि मंत्रिमंडल में भी 8 से 10 मंत्री जम्मू संभाग के थे। इसके बाद 2008 में कांग्रेस, नेकां और पैंथर्स पार्टी की सरकार बनी। उमर अब्दुुल्ला 5 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे। सरकार के साथ जम्मू संभाग के 21 विधायक थे। सरकार में 8 से 10 मंत्री जम्मू संभाग के थे।
वर्ष 2014 में पीडीपी और भाजपा की सरकार बनी। इसमें मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद 2016 तक और बाद में 2018 तक महबूबा मुफ्ती रहीं। मंत्रिमंडल में 8 से 10 मंत्री जम्मू संभाग के थे जबकि जम्मू से 25 विधायक सरकार का हिस्सा थे। अब 2024 में नेकां और कांग्रेस सरकार बनाने जा रहे हैं। इसमें जम्मू संभाग के 10 से 11 विधायक सरकार का हिस्सा होंगे लेकिन मंत्रिमंडल में इक्का-दुक्का लोगों को ही जगह मिलने की उम्मीद है। ऐसे में पिछले 22 वर्ष में पहली बार होगा जब सरकार में जम्मू संभाग की हिस्सेदारी बहुत कम रह जाएगी। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या विधानसभा में जम्मू के हित की आवाज उठ पाएगी। क्या जम्मू को उसका पूर्ण अधिकार मिल पाएगा। क्योंकि भाजपा के 29 विधायक तो इस बार विपक्ष में बैठेंगे ऐसे में जम्मू की आवाज सरकार में कौन उठाएगा क्योंक जम्मू ने एकतरफा भाजपा को समर्थन दिया पर भाजपा फिलहाल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है तो अब जम्मू का क्या होगा यह एक बड़ा सवाल है।
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हिन्दुस्थान समाचार / अश्वनी गुप्ता
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