शेख अब्दुल्ला ने महाराजा हरि सिंह को निर्वासन भेजने के लिए नेहरू के साथ साज़िश की- अरुण गुप्ता
जम्मू 21 सितंबर (हि.स.)। भाजपा के मीडिया सेंटर इंचार्ज और प्रवक्ता अरुण गुप्ता ने कहा है की नेशनल कॉन्फ्रेंस एनसी के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने महाराजा हरि सिंह जी को निर्वासन में भेजने की साजिश रची थी। प्रधानमंत्री नेहरू ने अपने दोस्त शेख के साथ मिलकर इस एनसी, कांग्रेस साज़िश के तहत महाराजा को जम्मू और कश्मीर से बाहर किया।
अप्रैल 1949 की घटनाओं को याद करते हुए गुप्ता ने कहा कि इस साजिश के तहत प्रधानमंत्री नेहरू ने महाराजा हरि सिंह को परामर्श के लिए दिल्ली बुलाया। महाराजा अपनी पत्नी, अपने बेटे करण सिंह, अपने कुछ करीबी सहयोगियों और सलाहकारों के साथ दिल्ली आए। दिल्ली पहुंचने पर महाराजा ने अपने दल के साथ जनपथ पर स्थित होटल इंपीरियल में ठहराव किया। उस समय महाराजा को नेहरू की मंशा का कोई आभास नहीं था जो शेख की सलाह पर काम कर रहे थे श्री गुप्ता ने बताया।
एक दिन करण सिंह को प्रधानमंत्री नेहरू ने नाश्ते के लिए अपने निवास पर बुलाया और उनसे कहा कि वह अपने पिता महाराजा हरि सिंह की गैरमौजूदगी में जम्मू और कश्मीर के राजप्रतिनिधि रेजेंट का पद संभालें। एक दिन पहले एक आधिकारिक डिनर में महाराजा को बताया गया कि वह किसी भी हालत में अपनी राज्य में वापस नहीं जा सकते। इस खुलासे से महाराजा और उनकी पत्नी स्तब्ध रह गए कि उन्हें अनिश्चितकालीन रूप से जम्मू-कश्मीर से बाहर रहने को कहा जा रहा था।
महाराजा को अपनी राज्य जम्मू-कश्मीर से अत्यधिक प्रेम था और उन्होंने लगभग दो महीने दिल्ली और देहरादून में बिताए। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू से एक से अधिक बार मुलाकात की और उनसे तर्क करने की कोशिश की कि उन्हें जम्मू-कश्मीर वापस जाने से रोकना अनुचित है। हालांकि महाराजा की नेहरू के साथ बार-बार चर्चा बेकार साबित हुई क्योंकि नेहरू ने शेख का पक्ष लेने का फैसला कर लिया था। यह शेख की नेहरू के सामने एक शर्त थी कि महाराजा को जम्मू.कश्मीर से दूर रखा जाएए श्री गुप्ता ने विवरण देते हुए कहा।
महाराजा शेख अब्दुल्ला की इस गद्दारी से पूरी तरह टूट गए थे जिसमें प्रधानमंत्री नेहरू भी सहायक थे। जब महाराजा को एहसास हुआ कि उन्हें जबरन निर्वासन में भेजा जा रहा है तो उन्होंने बंबई वर्तमान मुंबई जाने का फैसला किया। 20 जून को दिल टूटे महाराजा दिल्ली से चले गए उनकी पत्नी हिमाचल प्रदेश चली गईं और करण सिंह ने नेहरू के कहने पर वापस जम्मू.कश्मीर लौट आए। महाराजा के परिवार के तीन सदस्य तीन अलग-अलग दिशाओं में चले गए जो शेख की क्रूर साजिश के कारण अलग हो गए। कई साल बाद महाराजा का अप्रैल 1961 में बंबई में निधन हो गया लेकिन उस मनहूस दिन के बाद अप्रैल 1949 में उन्होंने कभी जम्मू-कश्मीर की धरती पर कदम नहीं रखा।
इसके विपरीत बीजेपी ने हमेशा 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा द्वारा किए गए जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की प्रशंसा की है। इसके अनुसार 26 अक्टूबर को 2020 में अवकाश घोषित किया गया ताकि उस दिन को विलय दिवस के रूप में मनाया जा सके। दो साल बाद 2022 में महाराजा हरि सिंह जी का जन्मदिन भी अवकाश के रूप में घोषित किया गया। इस प्रकार महाराजा से जुड़े दो महत्वपूर्ण दिन घटनाओं को आने वाले वर्षों के लिए बीजेपी ने चिह्नित किया है।
हिन्दुस्थान समाचार/राधा
हिन्दुस्थान समाचार / राधा पंडिता
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