जम्मू-कश्मीर में 2025 में मौसम की आपदाओं से 199 लोगों की मौत, 8,000 से ज्यादा घर तबाह

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जम्मू, 31 दिसंबर (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर में 2025 मौसम संबंधी आपदाओं के लिहाज से सबसे घातक वर्षों में से एक रहा। मानसून की बारिश, बादल फटने, अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन ने कई लोगों की जान ली, संपत्ति को नष्ट किया और अनगिनत परिवारों को अपने प्रियजनों की तलाश में भटकने पर मजबूर कर दिया।

जम्मू-कश्मीर पर्यटन के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार जम्मू डिवीजन सबसे अधिक प्रभावित हुआ जबकि कश्मीर घाटी में अपेक्षाकृत कम प्रभाव देखा गया। अगस्त के मध्य में किश्तवाड में बादल फटने से 68 लोगों की मौत, 14 अगस्त को मचैल माता यात्रा मार्ग पर स्थित किश्तवाड जिले के चशोती गांव में भीषण बादल फटने से भारी तबाही हुई। अचानक आई बाढ़ में घर, वाहन और लोग बह गए जिनमें दो सीआईएसएफ कर्मियों सहित 68 लोगों की मौत हो गई।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ‘लगभग 300 लोग घायल हुए और 38 लोग लापता हैं जिनमें से कई को व्यापक खोज के बाद मृत मान लिया गया है।’ अगस्त के अंत में जम्मू शहर और अन्य जिलों में रिकॉर्ड तोड़ बारिश हुई। तवी नदी उफान पर आ गई, भूस्खलन से जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग समेत कई राजमार्ग अवरुद्ध हो गए और कठुआ, रियासी, रामबन, डोडा और राजौरी जिलों में बादल फटने से भारी तबाही मची। वैष्णो देवी भूस्खलन में 34 तीर्थयात्रियों की मौत 26 अगस्त को वैष्णो देवी तीर्थयात्रा मार्ग पर अर्द्धकुवारी के पास हुए भूस्खलन में 34 तीर्थयात्री मलबे के नीचे दब गए जिससे उनकी मौत हो गई। अधिकारियों ने यात्रा को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया।

अन्य घटनाओं में रियासी के महोर में एक परिवार के सात सदस्य दब गए और रामबन के राजगढ़ इलाके में बादल फटने से तीन लोगों की मौत हो गई। हताहत और क्षति गृह मंत्रालय के साथ साझा किए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2025 में बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन के कारण 199 लोगों की मृत्यु हुई। किश्तवाड में सबसे अधिक 66 मौतें हुईं, उसके बाद रियासी में 48 मौतें हुईं। डोडा, रामबन, राजौरी और उधमपुर सहित अन्य जिलों में कम मौतें दर्ज की गईं।

कश्मीर डिवीजन में केवल एक मौत (अनंतनाग) और एक घायल (कुपवाड़ा) की सूचना मिली। इन आपदाओं के कारण 178 लोग घायल हुए, 33 लोग लापता हुए, 11,693 पशुधन नष्ट हुए, 8,404 घर क्षतिग्रस्त हुए और 77,915 हेक्टेयर फसलें प्रभावित हुईं। राहत योजनाओं के तहत लगभग सभी हताहत जम्मू डिवीजन में दर्ज किए गए जो मानसून की भीषण आपदाओं के प्रति इसकी संवेदनशीलता को उजागर करता है।

जम्मू में रिकॉर्ड तोड़ बारिश से आई बाढ़ और भूस्खलन अगस्त के अंत में जम्मू शहर और अन्य जिलों में रिकॉर्ड तोड़ बारिश हुई। तवी नदी उफान पर आ गई, भूस्खलन से जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग समेत कई राजमार्ग अवरुद्ध हो गए और बादल फटने से कठुआ, रियासी, रामबन, डोडा और राजौरी जिले प्रभावित हुए। राहत एवं बचाव अभियान बचाव कार्यों में राष्ट्रीय सुरक्षा बल (एनडीआरएफ), एसडीआरएफ, सेना और वायु सेना के हेलीकॉप्टर शामिल थे।

सरकार ने एसडीआरएफ और एनडीआरएफ निधि के तहत 209 करोड़ रुपये जारी किए और एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और पीएमएनआरएफ के माध्यम से प्रति परिवार 6 लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान की। एक अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीम ने नुकसान का आकलन किया और राहत कार्यों का समन्वय किया। भारत सरकार ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के माध्यम से जम्मू और कश्मीर को क्षेत्र के लगातार बदलते मौसम से बचाने के लिए कई विशेष तकनीकी और संरचनात्मक उन्नयन कार्य किए। वर्ष 2025 में एक प्रमुख लक्ष्य ‘मिशन मौसम’ पहल के तहत डॉप्लर मौसम रडार (डीडब्ल्यूआर) नेटवर्क का विस्तार करना था। सितंबर 2025 में सरकार ने जम्मू और कश्मीर में पहले से कार्यरत तीन रडारों के पूरक के रूप में चार अतिरिक्त रडारों की स्थापना को मंजूरी दी।

इस विस्तार का उद्देश्य देश में सबसे सघन मौसम निगरानी नेटवर्क में से एक का निर्माण करना है जिसे विशेष रूप से बादल फटने, आंधी-तूफान और भारी वर्षा जैसी अचानक और तीव्र तीव्रता वाली घटनाओं के लिए जिला-स्तरीय पूर्व चेतावनी प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। 2025 के अंत तक आईएमडी ने आपदा प्रबंधन और क्षेत्र के महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र दोनों के लिए वास्तविक समय डेटा एकत्र करने हेतु उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में स्वचालित मौसम स्टेशनों (एडब्ल्यूएस) की तैनाती में भी तेजी लाई।

श्रीनगर में झेलम नदी की वहन क्षमता को बढ़ाने (31,800 से 41,000 क्यूसेक तक) सहित दीर्घकालिक बाढ़ नियंत्रण परियोजनाएं 2025 के अंत तक 80 प्रतिशत पूरी हो चुकी हैं। सरकार ने जम्मू-कश्मीर को मानकीकृत ताप कार्य योजना (2025) में औपचारिक रूप से एकीकृत किया।

रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के दौरान स्कूलों के समय और बाहरी गतिविधियों को नियमित करने के लिए श्रीनगर और जम्मू में पहली बार इस योजना को लागू किया गया था। क्षेत्र के ग्लेशियरों को प्रभावित करने वाले दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तनों से निपटने के लिए राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागरीय अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) ने 2025 में हिमालयी क्रायोस्फीयर की निगरानी का विस्तार किया। इस शोध का उपयोग अब सिंधु बेसिन में जल सुरक्षा के भविष्य का मॉडल तैयार करने और स्थानीय बागवानी उद्योग, विशेष रूप से केसर और सेब उत्पादकों को अधिक बार और तीव्र मौसम परिवर्तन के लिए तैयार करने के लिए किया जा रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार / सुमन लता

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