छह देशों का प्रतिनिधिमंडल तिब्बती अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट

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धर्मशाला, 11 दिसंबर (हि.स.)। छह देशों के संसदीय प्रतिनिधिमंडलों ने संयुक्त रूप से तिब्बती लोगों के धर्म, संस्कृति और पहचान को बनाए रखने के अधिकार के प्रति अपनी एकजुटता को दोहराया है। इस प्रतिनिधिमंडल में चेक गणराज्य की सांसद जितका सेटलोवा, ऑस्ट्रेलिया की सांसद बारबरा पोकॉक, चिली के सांसद व्लाडो मिरोसेविक, फ्रांस की सांसद समंथा काज़ेबोन, न्यूजीलैंड के सांसद ग्रेग फ्लेमिंग और फिजी के सांसद वीरेंद्र लाल शामिल थे।

तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को शांति नोबेल मिलने की 36 वर्षगांठ के मौके पर धर्मशाला पंहुचे प्रतिनिधिमंडल ने मीडिया से बात करते हुए तिब्बत समुदाय के धर्म, संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है। चेक गणराज्य की सांसद सेटलोवा ने कहा कि दलाई लामा के निवास स्थान मैक्लोडगंज की उनकी यात्रा का उद्देश्य तिब्बती लोगों के धर्म, संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने के अधिकार के लिए निरंतर अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्रदर्शित करना था।

उन्होंने अपने देश के दमन के इतिहास को याद करते हुए कहा कि चेक गणराज्य तिब्बती संघर्ष के प्रति गहरी सहानुभूति रखता है और तिब्बत में यातना की खबरों का विरोध करता है।

​ऑस्ट्रेलियाई सांसद बारबरा पोकॉक ने आधिकारिक समारोहों के दौरान तिब्बती बच्चों द्वारा सांस्कृतिक प्रदर्शन की सराहना की और मानवाधिकारों पर ऑस्ट्रेलिया के सुसंगत रुख को दोहराया। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया तिब्बतियों—जो तिब्बत के अंदर और निर्वासन दोनों में हैं—के बिना किसी हस्तक्षेप या धमकी के रहने के अधिकारों का समर्थन करता है।

​चिली के सांसद व्लाडो मिरोसेविक ने दलाई लामा के साथ अपनी मुलाकात को याद किया, जिसके दौरान तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने मध्य मार्ग दृष्टिकोण और चीन के साथ बातचीत की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। मिरोसेविक ने कहा कि चिली चीन के साथ सकारात्मक राजनयिक और व्यापार संबंध बनाए रखता है और वह उन्हें बाधित नहीं करना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने शांतिपूर्ण बातचीत को तिब्बतियों और चीनी दोनों के लिए आवश्यक समर्थन दिया।

​फ्रांसीसी सांसद समंथा काज़ेबोन ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल में उनकी भागीदारी तिब्बती उद्देश्य के लिए समर्थन की स्पष्ट अभिव्यक्ति थी और उन्होंने तिब्बतियों की शांतिपूर्ण आकांक्षाओं के प्रति फ्रांस की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

​न्यूजीलैंड के सांसद ग्रेग फ्लेमिंग ने कहा कि तिब्बती निर्वासन समुदाय ने अपनी संस्कृति को उल्लेखनीय समर्पण के साथ संरक्षित किया है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ये परंपराएं तिब्बत में आज़ादी से मौजूद नहीं हैं। उन्होंने ज़ोर दिया कि तिब्बतियों को अपनी विरासत को युवा पीढ़ियों तक पंहुचाने और अपनी मातृभूमि में स्वतंत्र रूप से रहने का अधिकार है। उन्होंने दृढ़ता से कहा कि चीन को दलाई लामा के पुनर्जन्म के चयन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

​फिजी के सांसद वीरेंद्र लाल ने पहचान के मूल घटक के रूप में भाषा के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि दुनिया को आज तत्काल सत्य और समानता की आवश्यकता है। उन्होंने इन सार्वभौमिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए सामूहिक वैश्विक प्रयासों का आह्वान किया।

​तिब्बत में मानवाधिकारों पर यूरोपीय संघ ने जताई चिंता

​चीन में यूरोपीय संघ के एक प्रतिनिधिमंडल ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर जारी एक बयान में तिब्बत में मानवाधिकारों की लगातार बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है। यूरोपीय संघ ने कहा कि तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और किंघाई, सिचुआन और गांसु के तिब्बती क्षेत्रों में प्रतिबंध गंभीर बने हुए हैं, जहां की रिपोर्टों में धार्मिक जीवन पर व्यापक राज्य नियंत्रण, मठों की बढ़ी हुई निगरानी और अनिवार्य आवासीय विद्यालयों के व्यापक उपयोग का संकेत मिलता है। यूरोपीय संघ ने कहा कि ये स्कूल तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से अलग करते हैं और मंदारिन-भाषा शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं, जबकि तिब्बती-भाषा संस्थानों के बंद होने से स्थानीय संस्कृति और अधिक हाशिए पर चली गई है।

हिन्दुस्थान समाचार / सतेंद्र धलारिया

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