ऐतिहासिक तारादेवी मंदिर में हरी पत्तल में परोसा जाएगा लंगर

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ऐतिहासिक तारादेवी मंदिर में हरी पत्तल में परोसा जाएगा लंगर


शिमला, 12 जुलाई (हि.स.)। 250 वर्ष पुराने शिमला के ऐतिहासिक मंदिर तारादेवी में देश भर से आने वाले श्रद्धालुओं को पारंपरिक उत्पाद पत्तल में लंगर का प्रसाद परोसा जाएगा। यह व्यवस्था 14 जुलाई (रविवार) से शुरू कर दी जाएगी। शिमला के उपायुक्त अनुपम कश्यप ने यह जानकारी दी है।

उन्होंने कहा कि अपनी संस्कृति और धरोहर को सहेजने की दिशा में संतुलित पर्यावरण के लिए मंदिरों में टौर के पत्तों से तैयार पत्तल में लंगर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण के आधीन राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत सुन्नी खंड में कार्य कर रहे सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन को ये पत्तल बनाने का जिम्मा दिया गया है। उन्हें प्रथम चरण में पांच हजार पत्तल बनाने का ऑर्डर दिया गया है।

उपायुक्त ने कहा कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में स्वयं सहायता समूहों को रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन पूरी तरह से प्रयास कर रहा है । उक्त फेडेरशन में 2900 से अधिक महिलाएं पत्तल बनाने का काम करती है, लेकिन पत्तलों की डिमांड कम होने के कारण उत्पादन अधिक नहीं करते थे। इस दिशा में अब प्रशासन ने फैसला लिया है कि जिला के सभी मंदिरों में हरी पत्तल में लंगर परोसे जाएंगे। ऐसे में प्रथम चरण में तारादेवी मंदिर से शुरूआत की जा रही है।

सक्षम कलस्टर लेवल फेडरेशन के प्रतिनिधियों ने उपायुक्त को पत्तलों के उत्पादन के बारे में जानकारी दी और स्वयं बनाए पत्तल भी भेंट किए। फेडरेशन ने कहा कि उक्त क्षेत्र में टौर के पेड़ बहुत कम है। इस विषय पर उपायुक्त ने कहा कि वन विभाग के सहयोग से आगामी होने वाले पौधारोपण अभियान में टौर के पौधे भी लगाए जाएंगे ताकि भविष्य में टौर के पत्तों की कमी न हो पाए।

बता दें कि हिमाचल की संस्कृति में निचले हिमाचल में धाम के दौरान लजीज व्यंजन परोसने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली हरी पत्तल का महत्व सबसे ऊपर है। धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को समेटे देवभूमि हिमाचल के कई इलाकों में यह परंपरा आज भी जारी है। टौर से बनने वाली इस पत्तल में सामाजिक समरसता के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है। पहाड़ की यह पत्तल टौर नामक बेल के पत्ते से बनती है। यह बेल मध्यम ऊंचाई वाले शिमला, मंडी, कांगड़ा और हमीरपुर जिले में ही पाई जाती है।

टौर की पत्तल की क्या है खूबियां

टौर की बेल कचनार परिवार से ही संबंधित है और इसमें औषधीय गुण को लेकर भी कई तत्व पाए जाते हैं। इससे भूख बढ़ाने में भी सहायता मिलती है। एक तरफ से मुलायम होने वाले टौर के पत्ते को नैपकिन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। टौर के पत्ते शांतिदायक व लसदार होते हैं। यही वजह है इनसे बनी पत्तलों पर भोजन खाने का आनंद मिलता है। अन्य पेड़ों के पत्तों की तरह टौर के पत्ते भी गड्ढे में डालने से दो से तीन दिन के अंदर गल सड़ जाते हैं। लोग इसका उपयोग खेतों में खाद के रूप में भी करते हैं।

टौर के पत्तों से बनी पत्तलों से मिलेगा रोजगार

जिला प्रशासन का कहना है कि हरी पत्तल पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत मददगार साबित होगी और इससे गरीबों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। सक्षम कलस्टर लेवल फेडरेशन को बढ़ावा देने का उद्देश्य अन्य स्वयं सहायता समूहों को भी इस ओर प्रेरित करना है। प्रदेश में प्लास्टिक से बनी पतली, गिलास और चम्मच के उपयोग पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए है।

हिन्दुस्थान समाचार

हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा / सुनील शुक्ला

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