शिमला में ऑफिस टाइमिंग पर बजने वाले सायरन के खिलाफ पुलिस में शिकायत

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शिमला में ऑफिस टाइमिंग पर बजने वाले सायरन के खिलाफ पुलिस में शिकायत


शिमला, 17 जुलाई (हि.स.)। राजधानी शिमला में रोजाना ऑफिस टाइमिंग के दौरान सुबह व शाम बजने वाले सायरन के खिलाफ पुलिस में शिकायत की गई है। शिकायतकर्ता ह्यूमन राईट्स एक्टिविस्ट महिला है। शिकायतकर्ता सुमन कदम ने शहर के दो पुलिस थानों सदर व छोटा शिमला में सायरन बजने से ध्वनि प्रदूषण होने का हवाला देते शिकायत दर्ज करवाई है। इस अजीबोगरीब शिकायत पर छोटा शिमला पुलिस हैरत में पड़ गई है। पुलिस ने सायरन बजाने के अधिकृत सरकारी विभागों से पत्राचार कर इस सम्बंध में जवाब मांगा है। इस तरह की अनोखी शिकायत पहली मर्तबा आने से शिमला पुलिस सायरन को लेकर कानूनी पहलुओं पर भी विचार कर रही है, क्योंकि यह मामला सीधे तौर पर प्रशासन व सरकार से जुड़ा है।

पुलिस को दी शिकायत में ह्यूमन राईट्स एक्टिविस्ट सुमन कदम ने सायरन बजाए जाने की परम्परा पर न केवल सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी कहा है कि इसकी तीखी आवाज़ से शहरवासी परेशान हो रहे हैं और खासकर बुजुर्गों व बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए यह घातक हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने सायरन बजाए जाने को गैर कानूनी ठहराते हुए इसके लिए जिम्मेवार अधिकारियों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने की भी मांग कर डाली है।

शिकायतकर्ता ने तर्क दिया है कि आज के तकनीकी युग में ऑफिस टाइमिंग के लिये सायरन बजाना तर्गसँगत नहीं है, क्योंकि सभी के पास मोबाइल व घड़ियां हैं औऱ किसी को भी ऑफिस टाइमिंग की सूचना देने की जरूरत नहीं है।

तय मानकों से ज्यादा है सायरन की आवाज़

सर्वोच्च न्यायालय व हिमाचल सरकार द्वारा किसी भी प्रकार की ध्वनि बजाने के लिए इसकी मात्रा 55 डैसीबल निर्धारित की है, जबकि शिमला शहर के सी.टी.ओ. कार्यालय और छोटा शिमला में राज्य सचिवालय के समीप पुलिस थाना के पीछे दीवार पर लगे सायरन की ध्वनि इससे कहीं अधिक है। छोटा शिमला में लगे सायरन की ध्वनि को मापा गया तो यह 89.3 डैसीबल पाई गई, जबकि सी.टी.ओ. में लगे भौंपू की ध्वनि की मात्रा 88.30 डैसीबल पाई गई। इस संबंध में ह्यूमन राईट्स एक्टिविस्ट सुमन कदम ने पुलिस थाना छोटा शिमला व सदर पुलिस थाना शिमला में इनकी शिकायत देते हुए हिमाचल प्रदेश इंस्ट्रूमैंटलज (कंट्रोल ऑफ नाईसिज) एक्ट-1969 की धारा-3 के तहत एफ.आई.आर. दर्ज करने को लेकर शिकायत पत्र भेजा है। शिकायतकर्ता का कहना है कि इस संबंध में जब जिला प्रशासन से इसकी अनुमति के बारे में पूछा गया तो ए.डी.एम. कानून व्यवस्था ने साफ कहा है कि इस प्रकार की कोई अनुमति जिला प्रशासन की ओर से नहीं दी गई है। यानी जो सायरन लंबे समय से शिमला में बज रहे है, वह पूरी तरह से गैर कानूनी है।

आधुनिक व डिजीटल युग में सायरन बजाना नहीं है तर्कसंगत: सुमन

शिकायतकर्ता ह्यूमन राईट्स एक्टिविस्ट सुमन कदम ने कहा है कि किसी भी प्रकार की ध्वनि या फिर डी.जे. आदि बजाने के लिए एक निर्धारित मापदंड सुनिश्चित किए गए है, जिसके तहत सिर्फ संबंधित भवन के भीतर ही निर्धारित की गई ध्वनि की मात्रा में यह बजाय जा सकते है, जबकि इसके बाहर बजाने से सर्वोच्च न्यायालय ने इसे गलत करार दिया है। उन्होंने तर्क दिया है कि आज के तकनीकी युग में ऑफिस टाइमिंग के लिए सायरन बजाना तर्गसंगत नहीं है, क्योंकि सभी के पास मोबाइल व घडिय़ां है औऱ किसी को भी ऑफिस टाइमिंग की सूचना देने की जरूरत नहीं है।

शिमला में अंग्रेजों के जमाने से बज रहे सायरन

युद्ध के समय और कामगारों के लिए बजाने की थी परंपरा

फिल्मों में आज भी सायरन बजाने के सीन्ज अक्सर देखने को मिलते है, जिसमें युद्ध के समय सचेत रहने और कामगारों को उद्योगों, ईंट भट्टों, कोयले की खानों आदि में काम करने व छुट्टी के संकेत के तौर पर इन्हें बजाया जाता था। उस समय न तो फोन होते थे और न ही लोगों के पास घडिय़ां होती थी तो सायरन बजाकर ही उन्हें सचेत किया जाता था। शिमला में अंग्रेजों के जमाने से यह सायरन आज भी लगातार बज रहे है, जबकि आधुनिक समय में सभी के पास मोबाइल, घडिय़ां व अन्य डिजीटल सामग्री मौजूद है।

इस मामले में शिमला पुलिस का कहना है कि शिकायत के आधार पर कार्रवाई अमल में लाई जा रही है। जिला प्रशासन के सम्बंधित विभाग के अधिकारियों और राज्य सचिवालय के सामान्य प्रशासन से पत्राचार के जरिये जवाब मांगा गया है। यह व्यवस्था पहले से चल रही है। इस बारे पूरी जानकारी जुताई जा रही है।

हिन्दुस्थान समाचार

हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा / सुनील शुक्ला

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