केजरीवाल को जमानत देना हैरानी करने वाला, देश में अपराध के मनोविज्ञान पर गलत संदेश जाएगा : शान्ता कुमार
शिमला, 11 मई (हि. स.)। पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री शान्ता कुमार ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल देश की सबसे बड़ी अदालत से जमानत प्राप्त करके चुनाव प्रचार में लगेंगे। देश के इतिहास में यह अपनी प्रकार का पहला उदाहरण है। इससे पहले इस प्रकार के किसी भी गंभीर अपराध के आरोपित को चुनाव में प्रचार करने के लिए जमानत नहीं मिली।
शान्ता कुमार ने शनिवार को एक बयान में कहा कि कानून की नजर में सब अपराधी बराबर होते हैं। नेता अपराधियों के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। देश की सबसे बड़ी अदालत से आया यह निर्णय सबको हैरान कर रहा है।
शान्ता कुमार ने कहा कि दिल्ली सरकार का यह अपराध साधारण नहीं है। इसमें करोड़ों रुपये के लेन-देन का आरोप है। मुख्यमंत्री समेत तीन मंत्री और एक सांसद अपराधी है। पूरी सरकार अपराध में डूबी है। एक बार नहीं कई बार न्यायालय यह कह चुके हैं कि इनके विरुद्ध आरोप गंभीर है और उन आरोपों में सच्चाई है।
उन्होंने कहा कि चुनाव प्रचार करने के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत ने केजरीवाल को जमानत दे दी। जो नेता जेल में रह कर चुनाव लड़े रहे हैं, उन्हें भी यह अधिकार देना होगा। यदि केजरीवाल अपनी पार्टी का प्रचार करने के लिए जेल से छोड़े जा सकते हैं तो अपना प्रचार करने के लिए वे कैदी क्यों नही छोडे़ जा सकते, जो स्वंय चुनाव लड़ रहे हैं।
शान्ता कुमार ने कहा कि देश में अपराध बढ़ रहे हैं। बड़े बड़े लोग और बड़े नेता अपराध बढ़ाने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। नोटों के पहाड़ देखते देखते देश की जनता शर्मसार हो रही है। अपराध बहुत कम पकड़े जाते हैं, पकड़े जाते हैं तो सजा समय पर नहीं मिलती, बहुत से आरोपित छूट जाते हैं। अपराध बढ़ने का सबसे बड़ा कारण यह है कि समय पर सजा नहीं होती, सजा का डर नहीं है।
उन्होंने कहा कि देश में अपराध समाप्त करने के लिए जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी चाहिए। बलात्कार और गंभीर भ्रष्टाचार के लिए मौत की सजा का प्रावधान होना चाहिए। जिन नेताओं को समाज का नेतृत्व करना है और अच्छा उदाहरण पेश करना है, वही नेता यदि अपराध करते हैं तो उनको अधिक सजा मिलनी चाहिए। केजरीवाल को जमानत देने से अपराध के मनोविज्ञान पर जनता में बहुत गलत सन्देश गया है। देश के विद्वान और कानून जानने वाले इस विषय पर गंभीरता से विचार करें और सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णय पर फिर से विचार करने के लिए अनुरोध करें।
हिन्दुस्थान समाचार/सुनील/दधिबल
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