मूल प्रति में दिए गए चित्रों के बिना नहीं समझी जा सकती संविधान की भावना : प्रो. अग्निहोत्री

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मूल प्रति में दिए गए चित्रों के बिना नहीं समझी जा सकती संविधान की भावना : प्रो. अग्निहोत्री


धर्मशाला, 26 नवंबर (हि.स.)। संविधान निर्माताओं ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रतिनिधि चित्रों को विशेष स्थान प्रदान किया। संविधान की मूल प्रति में वर्णित उन्हीं चित्रों में संविधान की मूल आत्मा बसती है। उन चित्रों के बिना अंबेडकर के संविधान को सही ढंग से नहीं समझा जा सकता। संविधान दिवस के अवसर पर मंगलवार को केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित ’विकसित भारत: संवैधानिक अमृतपथ’ कार्यक्रम में हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के उपाध्यक्ष प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने यह बात कही।

अंबेडकर अध्ययन केंद्र और डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर अध्ययन केंद्र की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिशर्ज द्वारा एक नैरेटिव चलाया गया कि भारतीय अपना स्वयं का संविधान तैयार करने में सक्षम नहीं हैं। मगर जब भारतीय विशेषज्ञों ने अपनी उच्च बौद्धिक क्षमताओं से हर भारतीय की आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाला संविधान तैयार कर दिया, तो इंग्लैंड की तरफ से यह नैरेटिव बढ़ाया गया कि भारत का संविधान उधार का थैला है।

अग्निहोत्री ने कहा कि संविधान में उपयुक्त शब्द अन्य देशों के संविधान से भी मिल सकते हैं, मगर हमारे संविधान की भावना पूरी तरह से भारतीय है। संविधान की मूल प्रति में अंकित भारतीय सभ्यताएवं संस्कृति के प्रतिनिधि चित्रों के माध्यम से ही संविधान की उस मूल आत्मा और शब्दों को समझा जा सकता है। भारत सरकार के कानून मंत्रालय को चाहिए कि वह संविधान की मूल प्रति को प्रकाशित करवाए, ताकि हर भारतीय संविधान की मूल आत्मा को समझ सके।

प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि विकास के दो पक्ष होते हैं। पहला भौतिक पक्ष और दूसरा सांस्कृतिक पक्ष। विकास का भौ तिक पक्ष आत्माहीन होता है, जबकि सांस्कृतिक पक्ष कहीं अधिक गहरा और स्थायी होता है। विकसित भारत 2047 के संकल्प को पूरा करने के लिए विकास का सांस्कृतिक पक्ष ही अधिक लाभकारी होगा।

यह कार्यक्रम केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल के संरक्षण में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में अधिष्ठाता अकादमिक प्रो. प्रदीप कुमार, अधिष्ठाता समाज विज्ञान प्रो. संजीत ठाकुर, आम्बेडकर अध्ययन केंद्र की प्रभारी एवं सहायक आचार्य डॉ. किस्मत कुमार सहित शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी व समाज के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।

कार्यक्रम में कश्मीर अध्ययन केंद्र के सहायक आचार्य डॉ. जयप्रकाश सिंह और शोधार्थी प्रवीन कुमार और आदित्य अवस्थी के संपादन में प्रकाशित किताब ’परम वैभव: संकल्पना, सन्दर्भ एवं स्वरूप’ का विमोचन प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री, प्रो. प्रदीप कुमार और डॉ. किस्मत कुमार ने किया।

हिन्दुस्थान समाचार / सतिंदर धलारिया

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