भारतीय विद्या एवं विकास विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
शिमला, 18 मई (हि.स.)। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस) में शनिवार को भारतीय विद्या एवं विकास शिक्षा और विकास का अन्वेषण विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हो गई। इस संगोष्ठी में देश भर से लगभग 60 विद्वानों ने भाग लिया और पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों (भारतीय विद्या) तथा समकालीन विकास अवधारणाओं (विकास) के प्रतिच्छेदन पर गहन चर्चा की।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के पूर्व कुलपति और संगोष्ठी के संयोजक प्रो. एन.के. तनेजा ने उद्घाटन भाषण दिया। राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान (एनआईईपीए) की कुलपति प्रो. शशिकला वंजारी ने मुख्य भाषण प्रस्तुत किया, जिसमें संगोष्ठी के उद्देश्यों को रेखांकित किया गया।
आईआईएएस की शासी निकाय की अध्यक्ष प्रो. शशि प्रभा कुमार ने अध्यक्षीय भाषण में प्राचीन भारतीय शैक्षिक दर्शन की समग्र प्रकृति और आधुनिक चुनौतियों के प्रति उनकी प्रासंगिकता पर बल दिया।
दो दिनों के दौरान, विद्वानों ने शिक्षा, सामाजिक विकास, पर्यावरणीय स्थिरता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लिए भारतीय विद्या के व्यावहारिक निहितार्थों का पता लगाया। चर्चाओं में प्राचीन भारतीय ग्रंथों की आधुनिक शैक्षिक प्रथाओं को आकार देने में भूमिका, समकालीन सामाजिक मुद्दों के समाधान में भारतीय विद्या सिद्धांतों का अनुप्रयोग, सतत विकास को बढ़ावा देने में पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों की क्षमता, और वैश्वीकरण के संदर्भ में सांस्कृतिक पुनरुत्थान के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया गया।
संगोष्ठी के दूसरे दिन, समापन सत्र में हरियाणा उच्च शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष प्रो. कैलाश चंद्र शर्मा, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल और संस्कृत फाउंडेशन, दिल्ली के निदेशक (शैक्षणिक) प्रो. चांद किरण सलूजा ने अपने विचार व्यक्त किए। आईआईएएस के निदेशक प्रो. नागेश्वर राव ने अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए संगोष्ठी के प्रमुख निष्कर्षों और अनुसंधान एवं सहयोग के भविष्य के दिशा-निर्देशों को संक्षेप में प्रस्तुत किया।
यह संगोष्ठी अंतःविषय संवाद और सहयोग का एक मंच साबित हुई, जिसने समकालीन चुनौतियों के प्रति भारतीय विद्या के संभावित योगदानों की गहरी समझ को बढ़ावा दिया। आईआईएएस का लक्ष्य संगोष्ठी के दौरान प्राप्त अंतर्दृष्टि के आधार पर अनुसंधान और शोध की पहलों को और बढ़ावा देना है जो परंपरा और प्रगति के बीच की खाई को पाट सकें।
हिन्दुस्थान समाचार/उज्ज्वल
/सुनील
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