आईआईटी मंडी का अध्ययन : बद्दी-बरोटीवाला के भूजल में कैंसर पैदा करने वाली जहरीली धातुओं की मिलावट

आईआईटी मंडी का अध्ययन : बद्दी-बरोटीवाला के भूजल में कैंसर पैदा करने वाली जहरीली धातुओं की मिलावट
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आईआईटी मंडी का अध्ययन : बद्दी-बरोटीवाला के भूजल में कैंसर पैदा करने वाली जहरीली धातुओं की मिलावट


मंडी, 13 जून (हि.स.)। भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान मंडी और आईआईटी ज मू के शोधकर्ताओं ने हिमाचल प्रदेश के बद्दी-बरोटीवाला, बीबी औद्योगिक क्षेत्र के भूजल में कैंसर पैदा करने वाले प्रदूषकों तत्वों के प्रसार का विश्लेषण किया है। जिसमें पाया कि इस इलाके के भूजल में ऐसे प्रदूषित रसायन हैं जो कैंसर का कारण बन सकते हैं। भारत में खेती और पीने के लिए ज्यादातर जमीन के नीचे के पानी का इस्तेमाल होता है। लेकिन तेजी से शहर बढऩे, कारखानों के लगने और आबादी बढऩे की वजह से भूजल का इस्तेमाल बहुत ज्यादा हो गया है। जिससे पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है। कुछ ऐसा ही हाल हिमाचल प्रदेश के बद्दी-बरोटीवाला इंडस्ट्रियल एरिया का है। यहां कारखानों की वजह से जमीन के नीचे के पानी में जहरीले पदार्थ मिल गए हैं। जो सरकार के बताए गए सुरक्षित मात्रा से कहीं ज्यादा हैं। ऐसे गंदे पानी को पीने से लोगों को कई बीमारियां हो रही हैं। जिनमें 2013 से 2018 के बीच कैंसर और किडनी की बीमारी के भी बहुत मामले सामने आए हैं।

शोध पत्र में हुआ इस बात का खुलासा

आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दीपक स्वामी और उनके शोध छात्र उत्सव राजपूत ने आईआईटी ज मू के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नितिन जोशी के साथ मिलकर एक शोध पत्र प्रकाशित किया है। यह शोध पत्र प्रतिष्ठित जर्नल -साइंस ऑफ द टोटल एनवायरमेंट में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में उन्होंने क्षेत्र के भूजल के रासायनिक गुणों की जांच की है। इसके साथ यह भी पता लगाया है कि जमीन में पाए जाने वाले हानिकारक धातुओं की मात्रा में भौगोलिक रूप से क्या अंतर होता है। इस शोध में यह पता लगाने की कोशिश की गई है कि पीने के पानी के ज़रिए जमीन में मौजूद हानिकारक रसायन एवं भारी धातुएं सेहत को कैसे नुकसान पहुंचा सकते हैं।

अमेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी के तरीकों का इस्तेमाल कर के यह पता लगाया गया कि दूषित भूजल पीने से वयस्कों और बच्चों पर क्या असर हो सकता है। साथ ही यह भी देखा गया कि जमीन में कौन सी धातुएं ज्यादा खतरनाक हैं और गांवों के अलग.अलग इलाकों में इन धातुओं की मात्रा और सेहत को होने वाले खतरे में क्या फर्क है। आसान भाषा में कहें तो इस शोध में यह जाना गया है कि दूषित पानी पीने से कौन सी बीमारियां हो सकती हैं और किन इलाकों को ज्यादा खतरा है।

भूजल में है खतरनाक रसायनों का मिश्रण

आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दीपक स्वामी ने कहा कि दूषित भूजल पीने से सेहत को बहुत नुक्सान पहुंच सकता है। इसलिए जमीन के पानी को साफ एवं सुरक्षित रखने के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही यह भी जरूरी है कि फैक्ट्रियों से निकलने वाले निष्कासित पानी में जिंक, लेड, निकेल और क्रोमियम की मात्रा पर नजर रखी जाए ताकि लोगों की सेहत को खतरा ना हो।

उन्होंने यह भी कहा कि आर्थिक विकास के साथ.साथ लोगों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए और उद्योगों के विकास की वजह इ पर्यावरण प्रदुषण को नियंत्रित करने के लिए बनी हुई आधुनिक नीतियों को सुदृढ़ता से लागु करना चाहिए। उन्होंने पाया कि इस क्षेत्र का भूजल चट्टानों से प्रभावित है, खासकर कैल्शियम कार्बोनेट वाली चट्टानों से। पानी के सभी नमूनों में यूरेनियम की मात्रा एक समान पाई गई। वहीं, ज़्यादातर धातुओं के स्रोत औद्योगिक इकाइयां थीं। जबकि यूरेनियम और मोलिब्डेनम प्राकृतिक रूप से पाए गए। शोध में यह भी पता चला कि दूषित भूजल पीने से वयस्कों और बच्चों दोनों को स्वास्थ्य संबंधी खतरे हो सकते हैं। यह खतरा मु य रूप से प्राकृतिक यूरेनियम के कारण है, लेकिन साथ ही जस्ता, सीसा, कोबाल्ट और बेरियम जैसी धातुओं की मौजूदगी भी खतरनाक है, जो औद्योगिक स्रोतों से आती हैं। वयस्कों के लिए सबसे ज्यादा खतरा कार्सिनोजेनिक कैंसर पैदा करने वाला पाया गया। जो मु य रूप से निकेल और क्रोमियम जैसी औद्योगिक धातुओं की वजह से है।

आईआईटी ज मू के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नितिन जोशी ने कहा कि हमारे शोधकर्ता दल ने बद्दी-बरोटवाला के औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण की स्थिति का पता लगाने के लिए एक ज़ामीनी अध्ययन किया। इस अध्ययन का मु य उद्देश्य आसपास के समुदायों द्वारा पीने योग्य माने जाने वाले भूजल के रासायनिक तत्वों का विश्लेषण करना था। जांच से पता चला है कि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गयाए तो निचला हिमालयी क्षेत्र कुछ समय में चिंताजनक स्थिति में पहुंच सकता है। जहां भूजल प्रदूषण एक बहुत ही गंभीर समस्या होगी, चूँकि प्रदूषित भूजल को साफ करना बहुत जटिल एवं खर्चीली प्रक्रिया है।

इस शोध में बताया गया है कि इन खतरों को कम करने के लिए फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को साफ करने की तकनीक को बेहतर बनाने की बहुत जरूरत है। शोधकर्ताओं ने धातुओं के कारण होने वाले प्रदूषण और सेहत को होने वाले खतरों को दिखाने के लिए भौगोलिक मानचित्र तैयार किए हैं। इन मानचित्रों की मदद से आसपास रहने वाले लोग यह समझ सकते हैं कि उनके इलाके में पानी कितना दूषित है और प्रदूषण कहां से फैल रहा है। भविष्य में इन मानचित्रों का इस्तेमाल नीतियां बनाने और पानी को साफ करने के प्रयासों को दिशा देने में किया जा सकता है।

वहीं डॉ. दीपक स्वामी में यह भी अवगत कराया की उनके निर्देशन में शोधछात्रों का एक समूह प्राकर्तिक विश्लेषण से एक आधुनिक प्रक्रिया को ईजाद करने की कोशिश में लगे है जो की उद्योगिक इकाईओं के निष्काषित प्रदूषित पानी के प्रभाव को भूजल में मिलने से पहले उसका प्रभाव कम कर सकेए उन्हें उ मीद है की इस प्रयास के लिए उद्योग पति एवं सरकार जरूरी सुविधा प्रदान करेगी विकसित देशों में 80प्रतिशत से भी ज्यादा बीमारियां दूषित पानी से होती हैंए और हर साल लगभग 15 लाख लोगों की मौत खराब पानी की गुणवत्ता और साफ.सफाई की कमी के कारण होती है। इस लिहाज से इस अध्ययन को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार/ मुरारी/सुनील

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