हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में थम नहीं रही छात्र गुटों में झड़प, आरोपियों पर कार्रवाई की तैयारी
शिमला, 21 नवंबर (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में पिछले कुछ दिनों से छात्र गुटों के बीच झड़प रूकने का नाम नहीं ले रही है। इससे पहले शिक्षकों के बीच विवाद हुआ था और अब छात्र संगठन एनएसयूआई और एसएफआई कार्यकर्ता आपस में भिड़े हैं। इसमें दो छात्रों को गंभीर चोटें आई है। इसे लेकर बालूगंज थाने में क्रास एफआईआर भी दर्ज हुई है।
एनएसयूआई के छात्र नेता नितिन देष्टा ने मामला दर्ज करवाया है कि विश्वविद्यालय परिसर में एसएफआई के कार्यकर्ताओं ने डंडे लाठियों और तेजधार हथियार के साथ इस पर हमला करके मारपीट की और चोटिल किया। वही, दूसरी ओर एसएफआई पार्टी के कार्यकर्ता शहबाज खान ने मामला दर्ज कराया है कि पिंक पटल चौक पर एनएसयूआई के छात्र नेता नितिन देष्टा व चंदन ने इसके व इसके दोस्तों के साथ मारपीट की है।
इस बीच हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय प्रशासन भी हिंसा करने वाले छात्रों पर कार्रवाई करने की तैयारी में हैं। विवि प्रशासन ऐसे छात्रों की पहचान कर रहा है जो हिंसात्मक माहौल बना रहे हैं। उन छात्रों पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है। जानकारी अनुसार ऐसे छात्रों का कैंपस से निलंबन हो सकता है।
विवि के वीसी प्रो. एसपी बंसल का कहना है कि कैंपस में हिंसा को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
विवि कैंपस में अक्सर एबीवीपी और एसएफआई कार्यकर्ताओं में आए दिन झड़प होती है, लेकिन इस बार एनएसयूआई कार्यकर्ताओं के साथ झड़प देखने को मिली है। कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद से विवि कैंपस में एनएसयूआई ने अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश की है। विवि कैंपस में एनएसयूआई कार्यकर्ताओं के साथ नए छात्र भी जुड़े हैं। ऐसे में एसएफआई को अपने अस्तित्व का खतरा हो गया है। ऐसे में अब कैंपस में टकराव की स्थिति बनी हुई हैं। आने वाले दिनों में कैंपस में और टकराव देखने को मिल सकते हैं। भले ही प्रशासन की ओर से यहां पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की है, लेकिन फिर भी हिंसा नहीं रुक रही है।
बता दें कि वर्ष 2014 में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में बीजेपी के यूथ विंग एबीवीपी और कामरेडों के संगठन एसएफआई के सदस्यों में खून टकराव हुआ था। उस घटना के बाद एचपीयू के तत्कालीन वीसी प्रो. एडीएन वाजपेयी के कार्यकाल में छात्र संघ चुनाव पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उसके बाद मनोनयन के जरिए चुनाव कराने का खाका बनाकर संविधान तैयार किया गया। 2014 से अब तक मेरिट आधार पर ही चुनाव हो रहे हैं।
इससे पहले छात्र गुटों, संगठनों में हिंसा की बड़ी घटनाओं को आधार बनाकर वर्ष 1996 से 2000 तक छात्र संघ चुनावों पर प्रतिबंध लगाया गया था। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एससीए का गठन ही नहीं किया गया था। छात्र संगठनों के आंदोलनों के कारण वर्ष 2000 में चुनावों को बहाल कर दिया गया था।
हिन्दुस्थान समाचार/उज्जवल
/सुनील
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