पांगणा मे गूंज रहे है गुग्गा गाथा के मार्मिक गीत

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पांगणा मे गूंज रहे है गुग्गा गाथा के मार्मिक गीत


मंडी, 21 अगस्त (हि.स.)। मंडी जिला की सतलुज घाटी के अंतर्गत सुकेत क्षेत्र में सिद्ध नाथ परंपरा के अंतर्गत गूगा छत्री की पूजा-अर्चना और गाथा गायन का प्रचलन रहा है। सुकेत की प्राचीन राजधानी रहे पांगणा में गुग्गा सिंहासनी को घर-घर ले जाकर गुग्गा गाथा के गायन के साथ नाथ समुदाय बाग के लोग महीने भर इस समृद्ध प्राचीन परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। इस दौरान हर रात्रि में गुग्गा के प्रतिनिधि एवम् अधीनस्थ देवों के गूर आसुरी शक्तियों का शमन करते हैं।

गुग्गा गाथा का गायन श्रावन पूर्णिमा से लेकर गुग्गा अष्टमी तक होता है और नवमी को मेले का आयोजन होता है। परंतु पांगणा के सिंहासनी गुग्गा भाद्रपद मास के एक पखवाड़े से लेकर पूरे महीने तक देव समुदाय की अनुपस्थिति में क्षेत्र के भ्रमण पर रहते हैं और कुचाली और बुरी शक्तियों से क्षेत्र का रक्षण करते हैं। गुग्गा सिंहासनी की जन्म से जुड़ीं गाथाएं, गोरख कुंडली, बहन बिछोड़ा, झेड़े, वीर गाथाएं कई प्रकारांतर के साथ गाई जाती हैं। इन गाथाओं को सुनने के बाद भक्त परिजन गुग्गा जी की पूजा-अर्चना कर ऋ तु फल, अन्न, दानराशि व मिष्ठान अर्पित करते हैं। बदले में गुग्गा जी के पुजारी इसी थाली से अन्न की एक मुुुथी लेकर गुग्गा, गुग्गी के देव रहथि से स्पर्श कर पारिवारिक सुख समृद्धि और मनोकामना की पूर्ति की अरदास कर भक्त परिजनों को लौटा देते हैं। जिसे परिवार वाले विषम दानो की गणना के आधार पर प्रसाद रूप मे आपस मे वितरित कर ग्रहण करते हैं तथा शेष बचे दानों को अन्न-धन के कुठारों में सहेज कर रख देते हैं।

सुकेत अधिष्ठात्री राजराजेश्वरी महामाया पांगणा के छह मंजिले कलात्मक मंदिर के गर्भगृह से बाहर आकर पहला गायन महामाया के आंगन मे होता है। आशीर्वाद के रूप मे महामाया की चुनरी रूपी कवच प्राप्त धारए बाग,भुठा, नगराओं घांघली, शाहल, बखोल, मलौहण, सूईं, थाच, पज्याणु और बही सरही, कलाशन, चुराग, सोरता आदि पंचायतों के गांव-गांव, घर-घर जाकर गुग्गा गाथा के गायन सुनाकर अंत में पांगणा बाजार में पहुंचते है।

गोरखनाथ समुदाय के नाथ जाति के मंगलमुखी गायकों मे विरासत मे पल रही गुग्गा गायन से पांगणा वासी आत्मविभोर हो उठते है।

संस्कृति मर्मज्ञ डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि सुकेत की ऐतिहासिक नगरी पांगणा में सिद्ध नाथ परंपरा यहां के धार्मिक एवम् सांस्कृतिक जीवन की परंपराओं को जीवंतता प्रदान करने में महत योगदान रहा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / मुरारी शर्मा / सुनील शुक्ला

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