गुरु जम्भेश्वर संत ही नहीं, बल्कि महान पर्यावरणविद भी थे : जेपी यादव

गुरु जम्भेश्वर संत ही नहीं, बल्कि महान पर्यावरणविद भी थे : जेपी यादव
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गुरु जम्भेश्वर संत ही नहीं, बल्कि महान पर्यावरणविद भी थे : जेपी यादव






दक्ष व कौशलयुक्त युवाओं के बल पर 2047 से पहले ही विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे हम : प्रो. नरसीराम बिश्नोई

हिसार, 23 फरवरी (हि.स.)। गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के फूड टेक्नोलॉजी विभाग, बायो एंड नेनो विभाग, इनवायर्नमेंट साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग तथा जूलोजी विभाग के सौजन्य से ‘सतत विकास के लिए पर्यावरण, खाद्य एवं जैव प्रौद्योगिकी में वैश्विक चुनौतियां (आईसीईएफबी24)’ विषय पर हुई अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी शुक्रवार को सम्पन्न हो गई।

चौधरी रणबीर सिंह सभागार में हुए संगोष्ठी के समापन समारोह के मुख्यातिथि इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, मीरपुर के कुलपति प्रो. जेपी यादव थे। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने की। विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. विनोद छोकर तथा नई दिल्ली से प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. केसी बंसल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस अवसर पर सम्मेलन की समन्वयक प्रो. आशा गुप्ता व सह-समन्वयक प्रो. अनिल कुमार भी मंच पर उपस्थित रहे।

मुख्य अतिथि प्रो. जेपी यादव ने अपने संबोधन में कहा कि गुरु जम्भेश्वर जी महाराज अपने समय के केवल एक गुरु और संत ही नहीं, बल्कि महान पर्यावरणविद भी थे। उन्होंने मानव जाति को पर्यावरण प्रदूषण से होने वाले संभावित खतरों से समय रहते अवगत करवा दिया था। प्रो. यादव ने कहा कि आधुनिक तथा पारंपरिक ज्ञान के आपसी समन्वय से ही सतत विकास के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। पर्यावरण से संबंधित अधिकतर चुनौतियां मानव द्वारा स्वयं निर्मित हैं।

प्रकृति के प्रति हमारे गैर-जिम्मेदार व्यवहार के कारण हम पृथ्वी को आने वाली पीढिय़ों के लिए रहने के योग्य नहीं छोड़ रहे। हमें याद रखना चाहिए कि हम इस ब्रह्मांड के केवल केयरटेकर हैं, मालिक नहीं। हमें ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत को अपनाना चाहिए। वर्तमान समय में जैविक खेती को बढ़ावा देने तथा वैदिक संस्कृति को अपनाने की जरूरत है। कम पानी वाली फसलों को उगाया जाए तथा मोटे आनाज को बढ़ावा दिया जाए। उन्होंने कहा कि कानून को मानने वाला तथा जिम्मेदार नागरिक ही राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकता है।

कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने अपने संबोधन में कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी पर्यावरण, खाद्य एवं जैव प्रौद्योगिकी विषय से संबंधित विभिन्न मुद्दों को हल करने में मील का पत्थर साबित होगी। यह संगोष्ठी इस विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय पहचान देने तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर के अन्य संस्थानों के साथ अपने संबंध और अधिक मजबूत करने के साथ-साथ शोध तथा अनुसंधान के क्षेत्र में भी विश्वविद्यालय की बढ़ती प्रतिबद्धता को भी प्रदर्शित करती है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि हम दक्ष तथा कौशलयुक्त युवाओं के बल पर 2047 से पहले ही विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। उन्होंने इस संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए आयोजकों को बधाई भी दी।

कुलसचिव प्रो. विनोद छोकर ने अपने संबोधन में कहा कि इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में विषय से संबंधित विभिन्न चुनौतियों तथा संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है। यह संगोष्ठी प्रतिभागियों के लिए अत्यंत उपयोगी रही। संगोष्ठी ने सतत विकास से जुड़े मुद्दों के संबंध में नए आयाम स्थापित किए हैं।

प्रो. केसी बंसल ने अपने संबोधन में कहा कि किसी भी राष्ट्र की सफलता उसकी कृषि के विकास पर आधारित होती है। भोजन तथा पर्यावरण हमारे लिए हमेशा ही महत्वपूर्ण रहे हैं। बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी दुनिया में नए शोध हो रहे हैं।

प्रो. आशा गुप्ता ने अपने स्वागत संबोधन में इस तीन दिवसीय संगोष्ठी की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा बताया कि संगोष्ठी में देश तथा विदेश के विषय विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों को संबंधित विषयों से संबंधित अत्यंत उपयोगी व्याख्यान दिए। प्रतिभागी डा. अशोक ने अपने फीडबैक में बताया कि यह संगोष्ठी प्रतिभागियों के ज्ञान व कौशल में वृद्धि करने में अत्यंत उपयोगी रही। उन्होंने संगोष्ठी के सभी आयामों को सराहा तथा आयोजकों का धन्यवाद किया। प्रो. अनिल कुमार ने धन्यवाद किया।

हिन्दुस्थान समाचार/राजेश्वर

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