भोजन व्यक्ति के लिए केवल जरूरत नहीं, बल्कि बुनियादी अधिकार : प्रो. नरसी राम बिश्नोई

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भोजन व्यक्ति के लिए केवल जरूरत नहीं, बल्कि बुनियादी अधिकार : प्रो. नरसी राम बिश्नोई


भोजन व्यक्ति के लिए केवल जरूरत नहीं, बल्कि बुनियादी अधिकार : प्रो. नरसी राम बिश्नोई


‘अच्छे जीवन और अच्छे जीवन के लिए भोजन का अधिकार’ विषय पर आयोजित सेमिनार में बोले कुलपति

हिसार, 16 अक्टूबर (हि.स.)। गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने कहा है कि भोजन व्यक्ति के लिए केवल जरूरत ही नहीं, बल्कि एक बुनियादी अधिकार है। भोजन स्वस्थ व पोषित राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक है। खाद्य सुरक्षा के लिए कार्य करना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है।

प्रो. नरसी राम बिश्नोई बुधवार को खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग के सौजन्य से विश्व खाद्य दिवस के उपलक्ष्य पर ‘अच्छे जीवन और अच्छे जीवन के लिए भोजन का अधिकार’ विषय पर आयोजित सेमिनार को मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे। चौधरी रणबीर सिंह सभागार में हुए इस कार्यक्रम में डा. सुरेन्द्र एस घोंकरोकत्रा मुख्य वक्ता थे। कुलसचिव प्रो. विनोद छोकर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। अध्यक्षता विभागाध्यक्ष तथा कार्यक्रम संयोजक प्रो. अराधिता बीरे ने की। विभाग के वरिष्ठ प्रो. अलका शर्मा भी मंच पर उपस्थित रही।

कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने कहा कि भूख और कुपोषण को मिटाकर ही हम आने वाली पीढि़यों को बेहतर जीवन दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ के 17 उद्देश्यों में से चार उद्देश्य खाद्य सुरक्षा को लेकर हैं। भोजन की बर्बादी खाद्य की कमी का मुख्य कारण है। एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में 400 अरब डॉलर का भोजन प्रतिवर्ष बर्बाद हो जाता है।पोषणयुक्त भोजन की पर्याप्त उपलब्धता के लिए आवश्यक है कि भोजन की बर्बादी न हो। उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक और तेजी से बदलते वैश्विक परिवेश के बावजूद विश्वभर में 881 मिलियन लोग लंबे समय से कुपोषित हैं। इनमें ज्यादा संख्या बच्चों और महिलाओं की है। हमें कृषि, भोजन गुणवत्ता तथा प्राकृतिक संसाधनों का अतिरिक्त दोहन किए बिना हर व्यक्ति के लिए पर्याप्त व पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध करवाना सुनिश्चित करना होगा। उन्होंने कहा कि गुरु जम्भेश्वर जी महाराज के नाम पर स्थापित यह विश्वविद्यालय खाद्य सुरक्षा और तकनीकों के सम्बंध में निरंतर नए अनुसंधान करके विश्व स्तर पर अपना सहयोग दे रहा है।

मुख्य वक्ता डा. सुरेन्द्र एस घोंकरोकत्रा ने कहा कि भारतीय पारंपरिक भोजन व्यवस्था विश्व की श्रेष्ठ भोजन व्यवस्था है। भारतीय भोजन व्यवस्था में पोषण सुरक्षा के साथ-साथ सततता भी शामिल है।

उन्होंने पोषण सुरक्षा तथा सततता के लिए भारतीय पारंपरिक भोजन व्यवस्था विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए बताया कि भारत तो एक ऐसा देश है, जहां मिट्टी, पेड़ों, नदियों और पर्वतों आदि को भी पूजा जाता है। सततता हमारी परम्पराओं का हिस्सा है। आज भी हमारे गांव में पहली रोटी गाय के लिए निकालने की परम्परा है। उन्होंने कहा कि भारतीय धीरे-धीरे अपनी पारंपरिक व्यवस्था को छोड़कर पाश्चात्य भोजन व्यवस्था अपनाने लगे हैं, जो स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त नहीं है।

प्रो. विनोद छोकर ने कहा कि विश्व खाद्य दिवस हमें हर व्यक्ति के लिए पर्याप्त, स्वस्थ व सुरक्षित भोजन सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करता है। विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तथा विश्व में दूसरा सबसे बड़ा अन्न उत्पादक देश होने के बावजूद खाद्य सुरक्षा के मामले में भारत की स्थिति बेहतर नहीं है। भोजन केवल एक वस्तु नहीं, बल्कि जीने के लिए आवश्यक है।

विभागाध्यक्ष प्रो. अराधिता बीरे ने अपने संबोधन में बताया कि विभाग ने विश्व खाद्य दिवस के उपलक्ष्य पर तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया है। इस दौरान खाद्य से संबंधित पोस्टर तथा स्लोगन प्रतियोगिता, फूड फोटोग्राफी प्रतियोगिता तथा कोलाज प्रतियोगिताएं करवाई गई। विभाग के विद्यार्थियों ने खाद्य सुरक्षा से संबंधित रैली निकाली तथा फूड स्टाल लगाए गए।

विभाग के विद्यार्थियों द्वारा विश्वविद्यालय के चौधरी रणबीर सिंह सभागार के क्रश हॉल के प्रथम तल पर फूड स्टाल लगाई गई, जहां विद्यार्थियों ने खुद बनाए पोषणयुक्त भोजन का प्रदर्शन किया। कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने सभी स्टालों का अवलोकन किया तथा विद्यार्थियों का इस श्रेष्ठ आयोजन के लिए हौसला बढ़ाया।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर

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