जींद: नागरिक अस्पताल में मनाया गया विश्व थैलेसीमिया दिवस

जींद: नागरिक अस्पताल में मनाया गया विश्व थैलेसीमिया दिवस
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जींद: नागरिक अस्पताल में मनाया गया विश्व थैलेसीमिया दिवस


जींद, 1 जून (हि.स.)। नागरिक अस्पताल में शनिवार को विश्व थैलेसीमिया दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। डिप्टी एमएस डा. राजेश भोला ने कहा कि थैलेसीमिया खून से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है, जिसमें व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन बनना बंद हो जाता है। यह बीमारी पेरेंट्स से बच्चों तक पहुंचती है। ऐसे में इस लेकर जागरुकता फैलाने के मकसद से हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। यह दिन थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए है।

उन्होंने अभिभावकों को सलाह दी कि अगर उनका पहला बच्चा थैलेसीमिया बीमारी से ग्रस्त है और वो दूसरा बच्चा चाह रहे हैं तो वो इस बात का पूरा ध्यान रखें और चिकित्सक से परामर्श लें। एमएस डा. अरविंद ने कहा कि थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है जो असामान्य जीन के माध्यम से माता-पिता से बच्चों में आता है। थैलेसीमिया ग्रस्त व्यक्ति सामान्य कार्यशील लाल रक्त कणिकाओं को पैदा करने में असमर्थ होता है। जिसके कारण व्यक्ति को रक्त की कमी हो जाती है और मरीज को लगातार दो से तीन सप्ताह के अंतराल में खून की आवश्यकता रहती है। ब्लड बैंक इंचार्ज डा. शिप्रा गिरधर ने बताया कि थैलेसीमिया होने पर शरीर में पीलापन बना रहना व दांत बाहर की ओर निकल आना, आयु के अनुसार शारीरिक विकास नहीं होना, कमजोरी और उदासी रहना, सांस लेने में तकलीफ होना, बार-बार बीमार होना, सर्दी, जुखाम से हमेशा पीडि़त रहना, कई तरह के संक्रमण होना, भूख नहीं लगना मुख्य लक्ष्ण हैं।

थैलेसीमिया का इलाज ब्लड ट्रांसफ्यूजन, केलेशन थेरेपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के माध्यम से किया जाता है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट महंगा है। इसके लिए डोनर का एचएलए मिलना जरूरी है। इसलिए अधिकांश मरीज ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर जीवित रहते हैं। थैलेसिमिया ग्रस्त बच्चे के शरीर में आयरन की मात्रा बढऩे लगती है। आयरन बढऩे से लीवर, हृदय पर दुष्प्रभाव होने लगता है। हालांकि आयरन की मात्रा को नियमित करने के लिए दवाएं दी जाती हैं।

नोडल अधिकारी डा. पालेराम कटारिया ने कहा कि थैलेसीमिया बीमारी से बचने के लिए मरीज का हिमोग्लोबिन 11-12 बनाए रखने का प्रयास करें। समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा करवाएं। पौष्टिक भोजन को व्यायाम को नियमित अपनी दिनचर्या में शामिल करें। नवजात और गर्भवती मां का नियमित टीकाकरण भी कारगर साबित होता है। डा. पालेराम ने बताया कि प्रयास है कि एक अलग से थैलेसीमिया व हीमोफीलिया के लिए सेंटर बनवाया जाए।

हिन्दुस्थान समाचार/ विजेंद्र/संजीव

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