सोनीपत: मंदिर और मठ प्राचीन मुर्ति कला को सहेजे हुए हैं: डा: राज सिंह

सोनीपत: मंदिर और मठ प्राचीन मुर्ति कला को सहेजे हुए हैं: डा: राज सिंह
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सोनीपत: मंदिर और मठ प्राचीन मुर्ति कला को सहेजे हुए हैं: डा: राज सिंह


-निर्मोही अखाड़ा मठ सिंधु घाटी की सभ्यता मूर्ति कला के समेटे रखने का जीवंत उदाहरण

सोनीपत, 29 अप्रैल (हि.स.)। भारत सरकार वरिष्ठ अधिकारी एवं निर्मोही अखाड़ा के मुख्य सलाहकार डा. राज सिंह ने बताया कि सिंधु घाटी की सभ्यता से मूर्ति कला के जीवंत उदाहरण मिलते हैं। भारत के मठों और मंदिरों ने इस प्राचीन मूर्ति कला को सहेजने और संवारने का काम किया है। वे सोमवार को गांव खांडा स्थित निर्मोही अखाड़ा में हनुमान जी की मूर्ति स्थापना के लिए पूजा अर्चना के बाद जानकारी दे रहे थे।

उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत के कांचीपुरम, मदुरई, श्रीरंगम, रामेश्वरम तथा उत्तर भारत में वाराणसी के मंदिरों की नक्काशी उस उत्कृष्ट कला के बेहतर उदाहरण हैं। मठ में एक तरफ जहां दक्षिण भारतीय शैली के बेहद सुंदर भित्ति चित्र बनाए गए हैं वहीं दूसरी और राजस्थान से संगमरमर की नक्काशी से जीवंत विग्रह मंदिर में स्थापित हैं। संगमरमर की मूर्तियों के लिए विश्व प्रसिद्ध, जयपुर के प्रसिद्ध मूर्तिकार राजेश वैष्णव द्वारा तैयार की गई। भगवान राधा कृष्ण, लक्ष्मी नारायण, गणेश जी, हनुमान जी के विग्रह प्रथम दृष्टि में श्रद्धा भक्ति भाव जागृत होते हैं।

राजेश वैष्णव द्वारा वियतनाम के संगमरमर से वैदिक धर्मानुसार नक्कासित मूर्तियां है उनके द्वारा बनायी गयी वैष्णव धर्म के प्रवर्तक स्वामी रामानंदाचार्य, स्वामी निम्बार्काचार्य, स्वामी माधवाचार्य और आचार्य विष्णु स्वामी की मूर्ति कला की श्रेष्ठतम प्रस्तुति है। साध्वी कमल वैष्णव द्वारा रेखांकित, भगवान कृष्ण की लीलाएं, भगवान विष्णु के विभिन्न रूप और श्री राम द्वारा रामेश्वरम में भगवान शिव के उपासना को दक्षिण भारतीय शैली में भित्ति चित्रों द्वारा दर्शाया गया है। मंदिर में भगवान राधा कृष्ण एवं लक्ष्मी नारायण के विग्रह उत्तर भारत की संगमरमर मूर्ति कला की किशनगढ़ शैली की बनी हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/ नरेंद्र/संजीव

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