हिसार: ग्वार में उखेड़ा बीमारी की रोकथाम के लिए बीज उपचार सरल व सस्ता इलाज: डॉ. बी.डी. यादव
हिसार, 19 मई (हि.स.)। ग्वार फसल में उखेड़ा रोग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, लेकिन लाईलाज नहीं। जानकारी के अभाव में किसान इसके लिए उपाय नहीं अपना पाते। उखेड़ा रोग के प्रकोप से 25 से 40 प्रतिशत खड़ी फसल नष्ट हो जाती है जो जमीन के प्रकार पर निर्भर करती है। यह बात 28 साल तक ग्वार फसल पर काम करने वाले हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत ग्वार वैज्ञानिक डॉ. बीडी यादव ने कही। वे कृषि विभाग के अधिकारियों व कृषि वैज्ञानिक के साथ मिलकर ग्वार की पैदावार बढ़ाने में किसानों को जागरूक कर रहे हैं।
ग्वार विशेषज्ञ डॉ. बीडी यादव ने किसानों को संबोधित करते हुए ग्वार में कम पैदावार होने का उखेड़ा बीमारी एक मुख्य कारण बताया। गोष्ठी के दौरान किसानों से रूबरू होने से पता चला कि यह उखेड़ा बीमारी किसी-किसी साल काफी बड़े रकबे में आ जाती है और आखिर में किसानों को उखेड़ा बीमारी के ज्यादा प्रकोप से खेत में ग्वार की खड़ी फसल में पौधों की संख्या कम होने की वजह से खेत को बहाना भी पड़ जाता है। इन बातों को ध्यान में रखकर यह प्रोग्राम हिसार जिले के कृषि विज्ञान केंन्द्र सदलपुर के तत्वावधान में गांव भोडिय़ा बिश्नोईयान में ग्वार विशेषज्ञ के साथ मिलकर जागरूकता शिविर लगाया गया जिसमें डॉ. नरेंद्र सिंह कृषि विज्ञान केंद्र के इंचार्ज मुख्य अतिथि थे, जबकि अध्यक्षता डॉ. बीडी यादव ने की।
डॉ. बीडी यादव ने बताया कि इस रोग की फंफूद जमीन के अन्दर पनपती है जो उगते हुए पौधो पर आक्रमण करती है। इस प्रकोप से पौधे की जड़ें काली पड़ जाती हैं तथा जमीन से पौधों की खुराक रुक जाती है। इसलिए पौधों पर स्प्रे करने का कोई फायदा नहीं होता। इस बीमारी की रोकथाम के लिए 3 ग्राम कार्बन्डाजिम 50 प्रतिशत (बेविस्टीन) प्रति किलो बीज की दर से सुखा उपचारित करने के बाद ही बिजाई करनी चाहिए। ऐसा करने से 80 से 95 प्रतिशत इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। जड़ गलन रोग का इलाज मात्र 15 रूपये बीज उपचार से संभव है। इस बीमारी की रोकथाम में बीज उपचार ही एकमात्र समाधान है। इस अवसर पर गांव के प्रधान रामसिंह का विशेष योगदान रहा। इसके अलावा जगदीश, राजाराम, सीताराम, जगदीश गोदारा, रमेश, सुलतान सिंह, धर्मपाल, सुन्दर, आत्माराम व सतबीर आदि मौजूद थे।
हिन्दुस्थान समाचार/राजेश्वर/संजीव
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