नारनौलः भारत की संकल्पना श्रेष्ठ बने समूचा विश्वः प्रो. रजनीश शुक्ल

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नारनौलः भारत की संकल्पना श्रेष्ठ बने समूचा विश्वः प्रो. रजनीश शुक्ल


नारनौल, 26 मई (हि.स.)। हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि) महेंद्रगढ़ में शुक्रवार को एक भारत श्रेष्ठ भारत प्रकोष्ठ द्वारा वसुधैव कुटुम्बकम्. विचार, वैशिष्टय एवं वर्तमान विषय पर केंद्रित संगोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में सामाजिक कार्यकर्ता शरद जयश्री कमलाकर चव्हाण उपस्थित रहे। संगोष्ठी की अध्यक्षता हकेवि के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने की।

प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने अपने संबोधन में भारतीय सभ्यता के विकास और उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत पुरातन काल से ही विश्व बंधुत्व के भाव के साथ अपनी एक अलग पहचान स्थापित किए हुए है। नील नदी का नाम भारत से जुड़कर ही बना है। इसी तरह ज्ञात मानव इतिहास को देखें तो भारत ही वह देश है जिसने समूचे विश्व को नई तकनीक उपलब्ध कराई। कोरोना काल का उल्लेख करते हुए प्रो. रजनीश शुक्ल ने कहा कि हमने जिस तरह से इस संकट की घड़ी में न सिर्फ खुद को सुरक्षित व आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया बल्कि समूचे विश्व को भी इस महामारी से बचाने के लिए मदद उपलब्ध कराई। भारतीय स्वभाव ही वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना लिए हुए हैं। हम संपूर्ण दुनिया को श्रेष्ठ बनाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं।

पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के सहआचार्य डॉ. हरित कुमार मीना ने अपने संबोधन में कहा कि हमें वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा को समझने के लिए भारत के वैदिक साहित्य को भी समझना होगा। भारत सदैव से ही अतुल्नीय रहा है और भारत ने सदा विश्व कल्याण के लिए सभी को एक साथ जोड़ने का ही मंत्र दिया है। इसी क्रम में शरद जयश्री कमलाकर चव्हाण ने कहा कि भारतीय सभ्यता सदैव से ही अध्ययन, चिंतन व नवाचार के मोर्चे पर समृद्ध रही है। नदी के किनारे विकसित भारतीय सभ्यता में सदैव अपनत्व का भाव देखने को मिलता है। यही परम्परागत सांस्कृतिक मूल्य वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा के पोषक हैं। इस मौके पर विश्वविद्यालय की प्रथम महिला प्रो. सुनीता श्रीवास्तव, प्रो. नंद किशोर, प्रो. बीर पाल सिंह यादव, डॉ. विद्युलता रेड्डी व डॉ, अजय कुमार आदि मौजूद रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/ श्याम/संजीव

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