झज्जर : विज्ञान के क्वांटम सिद्धांत से भी सटीक है संत नितानंद का भक्ति साहित्य : रामनाथ झा

झज्जर, 24 मार्च (हि.स.)। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के चिंतक व महान विचारक प्रोफेसर रामनाथ झा ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा पश्चिम के विज्ञान से कहीं ज्यादा जनोपकारी है। इस ज्ञान के अन्वेषक ऋषि मुनियों में संत नितानंद का नाम सबसे ऊपर आता है। उनके सुमिरन व साध के अंगों में भारतीय ज्ञान परंपरा का सही प्रस्तुतीकरण है जो विज्ञान के क्वांटम के सिद्धांत से कहीं ज्यादा सार्थक दिखाई देते है। प्रोफेसर झा ने ये उद्गार माजरा दूबलधन स्थित जाटेला धाम में सोमवार को आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।प्रोफेसर रामनाथ झा ने कहा कि ऐसी ज्ञान संपदा के कारण ही भारत को विश्व गुरु का दर्जा प्राप्त था। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पीठाधीश्वर महंत राजेंद्र दास ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि संत नितानंद वाणी प्रचार प्रसार समिति व साधसंगत नितानंद महाराज के ब्रह्म ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। भारतीय ज्ञान परंपरा की अनुपम देन आयुर्विज्ञान है। संत नितानंद की याद में विश्व स्तरीय आयुर्विज्ञान संस्थान मानव सेवा को समर्पित होगा, जिससे चिकित्सा के क्षेत्र में आयुर्वेद के नुस्खों और मेडिकल के नवाचार से असाध्य रोगो की सफल चिकित्सा होगी।दूसरे सत्र के बीज वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पूरन चंद टंडन ने संत नितानंद कृत सत्य सिद्धांत प्रकाश में सामाजिकता का बोध, सहजता में गहनता, विद्या माया, अविद्या माया, प्रकृति प्रदत्त भोजन आदि विषयों पर विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि संतों की वाणियों में जीवन जीने की कला है। संत नितानंद की वाणी का प्रचार प्रसार हेतु उन्होंने अनेक सुझाव भी दिए ।
संस्कार विश्वविद्यालय पाटोदा झज्जर के प्रोफेसर डॉक्टर दयानंद कादयान ने 'भारतीय ज्ञान परंपरा कोष में संत नितानंद के योगदान' नामक शोध पत्र पढ़ा, जिसमें सत्य सिद्धांत प्रकाश के अध्यात्म ज्ञान की भारतीय ज्ञान परंपरा के आधार पर सार्थक विवेचना की गई। संत नितानंद के साहित्य की एनईपी- 2020 के लिए पाठ्कचर्या में विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाने की सार्थकता का शानदार प्रस्तुतीकरण किया गया।जानेमन इतिहासकार प्रोफेसर मनमोहन शर्मा ने अपनी शोध प्रस्तुति में सरदार भगत सिंह यशपाल और चंद्रशेखर के रोहतक में क्रांतिकारी गतिविधियों के इतिहास को आदर्श ढंग से प्रस्तुत किया उनके मंदोदरी की मांग वगैरा मत से उन क्रांतिकारियों से गहरे संबंध थे तीनों क्रांतिकारियों को मौन धारण करके श्रद्धांजलि अर्पित की गई। संगोष्ठी में डॉक्टर हेमलता शर्मा, डॉ .किरण, डॉ. सुमन कुंडू,, डॉ. महेश कुमार व शोधार्थी आशु आदि 50 प्राध्यापकों व शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। डॉ. मनमोहन शर्मा ने सभी अतिथियों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों और साध संगत का इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।
हिन्दुस्थान समाचार / शील भारद्वाज