कैथल:नेताओं को अगर श्री राम लंका ले जाते, देख लंका सोने की वे रावण की तरफ हो जाते

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कैथल:नेताओं को अगर श्री राम लंका ले जाते, देख लंका सोने की वे रावण की तरफ हो जाते


साहित्य सभा की गोष्ठी में कवियों ने देश और समाज के मौजूदा हालातो पर कसे व्यंग्य, बयां किया दर्द

कैथल, 5 नवंबर (हि.स.)। साहित्य सभा की गोष्ठी में स्थानीय रचनाकारों ने देश की राजनीति और समाज के हालात पर अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। रविवार को आरकेएसजी कॉलेज में आयोजित गोष्ठी का संचालन रिसाल जांगड़ा ने किया और अध्यक्षता हरीश झंडई ने की गोष्ठी का आगाज़ राजेश भारती ने यूं किया ''देखो भरकर लाया हूं गागर में इक सागर मैं। अनिल गर्ग ने कहा- अगर प्रभु श्री राम वानरों की जगह हमारे नेताओं को लंका ले जाते, तो देख लंका सोने की, वे भी रावण की तरफ हो जाते।

बलवान कुंडू सावी ने कहा-कौन कहता है सरहदों का रंग नहीं होता। रवीन्द्र कुमार ''रवि'' ने कहा: आज ओवरवेट पर भी कुछ लिखो, और खाली पेट पर भी कुछ लिखो।''श्याम सुंदर गौड़ ने मां सरस्वती को याद करते हुए कहा- मां शारदे, मां शारदे, जीवन मेरा तूं संवार दे। दिलबाग अकेला ने कहा- प्रकृति बदलती है पल- -पल अपने रंग। शमशेर कैंदल ने आवारा पशुओं बारे कहा- ''सड़क पर जाते समय कभी देखा है आवारो सांडों व कुत्तो का आचरण। अनिल कौशिक ने फूलों के माध्यम से मां को याद करते हुए कहा- ब्रह्ममुहुर्त में उठकर मां पूजा के लिए गमले से फूल चुन लाती।

डा. चतरभुज सौदा ने दुनिया को कारावास बताते हुए कहा- संसार जेल या मालक की, उरै भोगण का स्थान। ईश्वर गर्ग ने कहा- कुछ पा लेना जीत नहीं है, कुछ खो देना हार नहीं। दिनेश बंसल ने कहा- बे-दिली कैसी, बेकली कैसी, अपनी किस्मत से नाखुशी कैसी। रजनीश शर्मा ने कहा'' अहोई माता करो कल्याण, मैने तो उपवास किया। प्रीतम शर्मा ने कहा- प्यार से जीवन सार्थक होता। डा. विकास आनंद ने कहा- पतन को उत्थान समझते रहे हम, अधम को महान समझते रहे हम। विनोद छौक्कर ने कहा-''दर्द तब महसूस होता है, जब इच्छा न कोई पूरी हो, जिन्दगी लगती अधूरी हो।

दीपावली पर श्री राम को याद करते हुए राजेश भारत ने कहा-''ये धरा राम है, वो गगन राम है। रवीन्द्र मित्तल ने कहा- सर्दियों के सितम से लड़ने को बुनना इस बार वह अधूरा स्वेटर। सूरजभान शांडिल्य ने अहम बारे कहा-'' मेरी मरती मैं, क्यूं न बोलती इसकी टैं। रिसाल जांगड़ा ने हरियाणवी दोहे में कहा-'' एक ''रोल्ला सुलझा नहीं, दूजा रोल्ला तैयार, इन रोल्यां के जाल मैं, उलझा यू संसार। हरीश झंडई ने युद्ध की विभीषिका पर कहा, बम बरसेंगे, फटेगी धरती, तड़देंगे लोग, कब मिलेगी यह भूख।

हिन्दुस्थान समाचार/नरेश

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