सोनीपत लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच हार-जीत के मायने

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सोनीपत लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच हार-जीत के मायने


-इस चुनाव ने कई रकार्ड बनाए पहले साधु संत सासंद बने

-कांग्रेस को सोनीपत लाकसभा सीट पर चौथी बार जीत मिली

सोनीपत, 5 जून (हि.स.)। सोनीपत लोकसभा सीट पर 2024 के चुनावों में कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी की जीत और भाजपा के मोहनलाल बडोली की हार ने हरियाणा की राजनीति में एक नई दिशा दी है। आइए, इस चुनाव के हार-जीत के कारणों और दोनों पार्टियों के प्रदर्शन का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं।

सबसे पहले तो कांग्रेस की जीत के कारण को जान लें इसमें स्थानीय मुद्दों पर ध्यान दिया गया। कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों को उठाया और समाधान की दिशा में ठोस योजनाएं प्रस्तुत कीं। किसानों की समस्याएं, बेरोजगारी, और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार जैसे मुद्दों पर जोर दिया गया। दूसरा अहम मुद्दा रहा हरियाणा बनने से अब तक किसी भी पार्टी ने सोनीपत संसदीय क्षेत्र में जींद को टिकट नहीं दी थी। यह टिकट मिलने और भाजपा द्वारा कंडीडेट को बाहरी कहने पर जींद जिला के लोगों ने नारा दिया कि अभी नहीं तो कभी नहीं।

सतपाल ब्रह्मचारी की लोकप्रियता का सामाजिक कार्यों में सक्रिय योगदान और उनकी सरल छवि ने मतदाताओं को प्रभावित किया। उनके व्यक्तिगत संपर्क अभियान ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गठबंधन की रणनीति कांग्रेस ने अन्य स्थानीय दलों के साथ समझौता किया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सक्रियता जाट नॉन जाट वोटों का विभाजन कम हुआ और मतदाताओं का समर्थन मिला। तीसरा बड़ा कारण 2019 में भाजपा की जीत के पीछे प्रमुख कारण मोदी लहर थी, जो 2024 में मोदी लहर का कमजोर रही। जनता के बीच आर्थिक मंदी और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर नाराजगी बढ़ी।

भाजपा की हार के कारण

भाजपा ने सतपाल ब्रह्मचारी को बाहरी कह कर पेश किया जबकि वे जींद जिला के रहने वाले हैं पांड़पिडारा में इनका सवा सौ साल पुराना धार्मिक स्थल है जिसके वे मठाधीश हैं। यह जींद वालों को नागवार गुजरा जहां से लगभग एक लाख वोटों से जीत मिली थी वहीं मामला फंस गया। दूसरा भाजपा सरकार पर आरोप लगे कि वे वादों को पूरा करने में असफल रहे। स्थानीय विकास परियोजनाओं की धीमी गति और अधूरी योजनाओं ने जनता को निराश किया। अंतरराष्ट्रीय बागवानी मंडी गन्नौर में जीटी रोड के साथ 10 साल में शुरु नहीं हो पाई। तीसरा किसान आंदोलन का सीधा असर भाजपा पर पड़ा। किसानों की नाराजगी और विरोध प्रदर्शन ने भाजपा की लोकप्रियता को कम किया।

मोहनलाल बडौली के प्रचार अभियान में 800 से ज्यादा नुक्कड़ सभाएं की, हर विधान सभा क्षेत्र की विजय संकल्प रैली में कमजोरियां रही इंवेट ज्यादा रहा लेकिन लोगाें से तालमेल नहीं बना पाए। भाजपा की हार में इसने बड़ी भूमिका निभाई। महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने भी भाजपा के खिलाफ माहौल तैयार किया। लोगों के काम बात नहीं की की गई इसलिए हार की दिशा में बढे।

हिन्दुस्थान समाचार/ नरेंद्र/संजीव

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