गुरुग्राम: परिवर्तन संघ से जनसेवा के रास्ते विधायक की कुर्सी तक पहुंचे थे राकेश दौलताबाद
-परिवर्तन संघ बनाकर वर्षों तक छात्राओं के लिए चलाई निशुल्क बस
-मरीजों के लिए निशुल्क एम्बुलेंस भी की थी शुरू
गुरुग्राम, 25 मई (हि.स.)। राकेश दौलताबाद...जिन्होंने पहले निर्दलीय चुनाव लड़ा और फिर इनेलो की टिकट पर चुनाव लड़ा। दोनों ही बार राकेश दौलताबाद को हार का मुंह देखना पड़ा। तीसरी बार उन्होंने फिर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ही चुनाव लड़ा और विधायक बनकर सरकार में भागीदारी बनाई। दो बार हारकर भी उन्होंने हार नहीं मानी। जब तीसरी बार निर्दलीय विधायक बने तो सरकार को समर्थन दिया और चेयरमैन की कुर्सी पर काबिज हुए।
परिवर्तन संघ बनाकर समाजसेवा और फिर राजनीति में आए बादशाहपुर विधानसभा से निर्दलीय विधायक बने राकेश दौलताबाद (44) का शनिवार की सुबह ह्दय गति रुकने से निधन हो गया। 39 साल की उम्र में वे विधायक बन गए थे। राकेश दौलताबाद ने सबसे पहले 2009 का बादशाहपुर से विधानसभा चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ा था। इस चुनाव में उनके सामने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री राव धर्मपाल थे। राकेश दौलताबाद राव धर्मपाल से 11385 वोटों से हार गए थे। हालांकि वे दूसरे नंबर पर रहे थे। 2014 के हरियाणा विधानसभा के चुनाव में राकेश दौलताबाद ने इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) की टिकट पर बादशाहपुर से चुनाव लड़ा। उनके सामने भाजपा की टिकट पर कद्दावर नेता एवं पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में कांटे की टक्कर थी। राव नरबीर सिंह को 86672 वोट मिले थे, जबकि 68540 वोट लेकर राकेश दौलताबाद दूसरे नंबर पर रहे थे।
भले ही आंकड़ों से राकेश दौलताबाद की इस चुनाव में हार हुई हो, लेकिन राजनीति में उनके पांव जम चुके थे। जनता के दिलों को काफी हद तक जीतने में वे कामयाब रहे थे। हार के बाद वे फिर से सक्रिय हुए। बादशाहपुर की जनता के बीच उनकी सक्रियता कम नहीं हुई। सेवा कार्यों को उन्होंने लगातार जारी रखा। उन्होंने दो प्रमुख कार्यों को सुचारू रूप से चलाए रखा। पहला तो कालेज में पढऩे वाली बेटियों के लिए निशुल्क बस सेवा और दूसरा मरीजों के लिए निशुल्क एम्बुलेंस सेवा। ऐसा करके वे युवाओं के बीच भी पसंद किए जाने लगे। परिवारों में उनके कार्यों की चर्चा होने लगी।
2019 में निर्दलीय लड़ा चुनाव
2019 का जब चुनाव आया तो उन्होंने किसी भी राजनीतिक दल से कोई संपर्क नहीं किया। इनेलो से वे पहले ही अलग हो चुके थे। ऐसे में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में ताल ठोंकी। इस चुनाव में राकेश दौलताबाद 1 लाख 6 हजार 827 वोट (47.6 प्रतिशत) वोट लेकर विधायक बन गए। इसके बाद मनोहर सरकार में उन्हें हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज कारपोरेशन के चेयरमैन की कुर्सी भी दी गई।
हिन्दुस्थान समाचार/ईश्वर/संजीव
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