गुरुग्राम: डॉ. विजय नागपाल रचित नाविक सतसई पुस्तक का हुआ लोकार्पण

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गुरुग्राम: डॉ. विजय नागपाल रचित नाविक सतसई पुस्तक का हुआ लोकार्पण


-सुरुचि साहित्य कला परिवार की ओर से किया गया आयोजन

गुरुग्राम, 22 दिसंबर (हि.स.)। सुरुचि साहित्य कला परिवार की ओर से सी.सी.ए. स्कूल सेक्टर चार में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी की अध्यक्षता में सुप्रसिद्ध गजलकार डॉ. विजय नागपाल नाविक के सद्य प्रकाशित दोहा संकलन नाविक सतसई का लोकार्पण हुआ। स्टारेक्स विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. अशोक दिवाकर एवं सुरुचि परिवार के अध्यक्ष डॉ. धनीराम अग्रवाल विशिष्ठ अतिथि रहे। महानगर संघ चालक मा. जगदीश ग्रोवर का सानिध्य रहा।

वरिष्ठ बाल साहित्यकार घमंडी लाल अग्रवाल ने नाविक सतसई पर अपनी नीर-क्षीर समीक्षा प्रस्तुत की। वरिष्ठ कवयित्री वीणा अग्रवाल ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। सुरुचि परिवार के महासचिव मदन साहनी ने कार्यकम का प्रभावी संचालन कर कार्यक्रम को नई उचाइयां प्रदान कीं। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने अपने काव्यात्मक उद्बोधन में कहा कि प्रकटी नाविक सतसई लेकर रत्न सुरत्न। चिंतन मंथन मनन से है यशपूर्ण प्रयत्न। उन्होंने कहा कि डॉ. नागपाल ने भारत की सांस्कृतिक पहचान को व्याख्यायित करने के लिए अद्भुत दोहे लिखे हैं। उनका यह पहला दोहा संकलन आश्वस्त करता है कि वे दोहा लेखन में और आगे जाएंगें।

उन्होंने कहा-पाकर नाविक सतसई, दोहा हुआ निहाल। आंसू का पीहर यही, खुशियों की ससुराल। वे आगे कहते हैं अद्भुत नाविक सतसई, लहर लहर चितचोर। संस्कृति सूरज उग रहा, ले रसवन्ती भोर॥ नाविक सतसई के कथ्य-शिल्प की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा गूंगी-बहरी लहर पर, नाविक है सवार। नफरत के बाजार में चला बांटने प्यार॥ मुख्य अतिथि विज्ञान व्रत ने कहा कि प्राय: दोहा लेखन में विषयों का वर्गीकरण नहीं होता। नाविक ने अपनी सतसई में उन सब के टाइटल देकर पाठकों को उनकी रुचि अनुसार दोहे पढऩे की सुविधा प्रदान करने का नवाचार प्रस्तुत किया है। विशिष्ठ अतिथि डॉ. अशोक दिवाकर ने कहा कि डॉ. नागपाल एक अच्छे दोहाकार के रूप में उभर कर आए हैं। प्रस्तुत सतसई में नाविक ने संघ के पंच परिवर्तनों को साकार करने का प्रयास किया है। ये दोहे जीवन मूल्यों पर आधारित हैं। जिनका आगे भी प्रयोग होता रहेगा। डॉ. दिवाकर ने कहा कि विभाजन की विभीषिका पर लिखे नाविक के दोहे उस कालखंड में लांछित हुई दूषित राजनीति एवं प्रायोजित हिंसा को बेनकाब करते हैं।समीक्षक घमंडी लाल अग्रवाल ने संकलन को कथ्य-शिल्प-विधान से परिपूर्ण, भावपूर्ण लेखन बताया। सुरुचि परिवार के अध्यक्ष डॉ. धनीराम अग्रवाल ने आगुंतक साहित्यकारों एवं नाविक के परिजनों का आभार किया।

हिन्दुस्थान समाचार / ईश्वर

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