हिसार : कुलपति प्रो. नरसीराम बिश्नोई को विश्व के शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठित सूची में मिला स्थान
लगातार पांचवीं बार स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए की ओर से जारी सूची में उपलब्धि
हिसार, 18 सितंबर (हि.स.)। गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई को वर्ष 2020 से लगातार पांचवीं बार स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए द्वारा जारी विश्व के श्रेष्ठ दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की सूची में शामिल किया गया है। इस वर्ष प्रो. बिश्नोई को ‘सिंगल ईयर’' ‘कंप्लीट कैरियर’ दोनों श्रेणियों में स्थान प्राप्त हुआ है, जो उनके दीर्घकालिक अनुसंधान और अद्वितीय वैज्ञानिक योगदान को दशार्ता है।
यह सूची विभिन्न वैज्ञानिक शोधकताअरं की समग्र अनुसंधान उपलब्धियों, प्रकाशित शोधपत्रों की गुणवत्ता, प्रभाव कारक (इम्पैक्ट फैक्टर), शोध-उद्धरण, सहकर्मी-समीक्षित पत्रों और अन्य प्रमुख अनुसंधान मापदंडों और विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान के आधार पर जारी की जाती है। प्रो. बिश्नोई का इस सूची में लगातार शामिल होना विश्वविद्यालय और पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। प्रो. बिश्नोई की इस उपलब्धि ने न केवल गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय बल्कि पूरे भारत के वैज्ञानिक समुदाय को गौरवान्वित किया है। यह सूची शोध-उद्धरण, सहकर्मी-समीक्षित पत्रों और अन्य प्रमुख अनुसंधान मापदंडों के आधार पर तैयार की जाती है, जो इसे वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिकों की सबसे प्रतिष्ठित रैंकिंग में से एक बनाती है।
प्रो. नरसी राम बिश्नोई पर्यावरण विज्ञान, जैव-ईंधन उत्पादन, बायोरिमेडिएशन, जल संसाधन प्रबंधन और स्थिरता जैसे विविध क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। उनके अनुसंधान का उद्देश्य महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों के स्थायी समाधान प्रदान करना है, जिससे उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है। जैव-ईंधन उत्पादन के क्षेत्र में, प्रो. बिश्नोई ने कृषि अपशिष्ट से ऊर्जा स्रोत उत्पन्न करने पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है, जिससे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम हो सके। उनका यह शोध नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है और पर्यावरणीय और आर्थिक समस्याओं के समाधान में सहायक है।
बायोरिमेडिएशन (जैव उपचार) के क्षेत्र में भी उनका कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। बायोरिमेडिएशन के अंतर्गत जैविक विधियों का उपयोग कर प्रदूषित पर्यावरण, विशेष रूप से मृदा और जल को शुद्ध करने के उपाय शामिल होते हैं। यह विधि औद्योगिक प्रदूषण से प्रभावित पारिस्थितिकी तंत्र को पुन: स्वस्थ करने के लिए एक स्थायी समाधान प्रदान करती है। उनके इस क्षेत्र में किए गए कार्यों से न केवल प्रदूषण नियंत्रण में मदद मिली है, बल्कि अधिक टिकाऊ और स्वच्छ पर्यावरण की दिशा में भी प्रगति हुई है।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर
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