फरीदाबाद: 75 हजार की साड़ी, बनाने में लगते हसूरजकुंड मेले में बनारस से नसीम लेकर आए हैं 75 हजार रुपये कीमत की साड़ी

फरीदाबाद: 75 हजार की साड़ी, बनाने में लगते हसूरजकुंड मेले में बनारस से नसीम लेकर आए हैं 75 हजार रुपये कीमत की साड़ी
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फरीदाबाद: 75 हजार की साड़ी, बनाने में लगते हसूरजकुंड मेले में बनारस से नसीम लेकर आए हैं 75 हजार रुपये कीमत की साड़ी


फरीदाबाद, 16 फरवरी (हि.स.)। अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले में तमाम कलाकार अपनी कला लेकर पहुंचे हैं। ऐसे में बनारस से आए नसीम आज भी विलुप्त ग्यारस जंगला कला को जीवित रखे हुए हैं। सूरजकुंड मेले में बनारस से आए नसीम अहमद ने बताया कि वह हैंडलूम की साडिय़ों का काम करते हैं। वह अपनी परंपरा को लेकर आगे चल रहे हैं और 20 साल से लगातार सूरजकुंड मेले में पहुंच रहे हैं।

उन्होंने बताया कि जब वह बहुत छोटे थे तो वह अपने पिता के साथ सूरजकुंड मेले में आया करते थे। सूरजकुंड विभाग के अधिकारियों ने उनसे कहा कि उनको साड़ी का लाइव डेमो चाहिए तो वे लोग यहां पर सेटअप लगाकर साडिय़ां बनानी हैं। उन्होंने कहा कि यह इसलिए लगाया गया है ताकि युवाओं को पता चल सके कि यह साडिय़ां कैसे बनाई जाती है और कैसे इन साडिय़ों पर काम किया जाता है। उन्होंने बताया कि वह सूरजकुंड में जंगला साड़ी लेकर पहुंचे हैं जिसकी कीमत उन्होंने 75000 रुपए रखी है। यह साड़ी इतनी महंगी इसलिए है क्योंकि इस साड़ी को बनाने में 18 से 20 दिन का समय लग जाता है।

नसीम अहमद ने बताया कि उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को साड़ी गिफ्ट की और यह साड़ी मेला परिसर में ही तैयार की है। वर्ष 2017 से हस्तशिल्प के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं और ट्रेडिशनल पैटर्न जैसे ब्रोकेट, कड़ुवा बूटी, तनछुई्, वाल कलम पर आधारित साड़ी, दुपट्टे करते है। सिल्क के अलावा उसके निर्माण में चांदी का प्रयोग करते हैं। उनके पास 15 हजार से लेकर 35 हजार रुपये तक की साडिय़ां उपलब्ध है। नसीम से पूर्व इनके पिता हनीसुर्रहमान और दादा हाफिज जुल्ला इसका काम किया करते थे। उन्होंने कहा कि 1994 में उनके पिता को नेशनल अवार्ड मिला और उन्हें भी यह अवार्ड से नवाज़ा जा चुका है।

हिन्दुस्थान समाचार/मनोज/संजीव

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