हिसार: गुरु श्री शंकराचार्य का भारत की एकता, अखंडता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान: नरसी राम बिश्नोई
सारे भारत की यात्रा करते हुए चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की
हिसार, 16 मार्च (हि.स.)। गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसीराम बिश्नोई ने कहा है कि गुरु श्री शंकराचार्य ने सनातन धर्म को प्रचारित करते हुए भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका अवदान अविस्मरणीय है। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य जैसे महान गुरु ने सारे भारत की यात्रा करते हुए चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। वे शनिवार को विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग एवं भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय के संयुक्त तत्वाधान में जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य पर आयोजित व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे।
सभागार में आयोजित व्याख्यान का विषय 'जगतगुरु श्री शंकराचार्य आध्यात्मिक एवं भाषाई एकता के वाहक' रहा। कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की जबकि कार्यक्रम में संस्कृत विद्वान, डायरेक्टर, सेंटर फॉर ह्यूमन साइंस,ऋषिहुड यूनिवर्सिटी, सोनीपत से प्रो.सम्पदानन्द मिश्र मुख्य वक्ता रहे। कार्यक्रम में अधिष्ठाता, मानविकी एवं समाज विज्ञान प्रो. मनोज दयाल विशिष्ट अतिथि रहे जबकि कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन विभाग की प्रभारी डॉ. गीतू धवन की देखरेख में किया गया।
कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि यह व्याख्यान काफी अर्थपूर्ण है, क्योंकि ऐसे व्याख्यान हमारे विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति एवं भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ने में सहायक सिद्ध होते हैं। उन्होंने बताया कि गुरु श्री शंकराचार्य ने सनातन धर्म को प्रचारित करते हुए भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका अवदान अविस्मरणीय है। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य जैसे महान गुरु ने सारे भारत की यात्रा करते हुए चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। यह चारों ज्योति पीठ आज भारत की एकता की प्रतीक है।
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता प्रो. संपदानंद मिश्र ने आदि शंकराचार्य के भाष्य प्रवाह को व्यक्त करते हुए बताया कि शंकराचार्य भारतीय संस्कृति के कालजयी और यशस्वी उन्नायक हैं। उनके जीवन वर्षों की संख्या भले ही कम हो पर उनके रचित ग्रन्थों की संख्या कई-कई जीवन के समकक्ष है। वे संवाद करते हैं, शास्त्रार्थ करते हैं और भारतीय वेदों, गीता और उपनिषदों पर भाष्य लिखकर यह प्रमाणित करते हैं कि भारतीय जीवन शैली श्रेष्ठ है। भारतीय जीवन अतुल्य है। उनके द्वारा की गई एकात्म की संकल्पना हमारे वर्तमान के लिए धरोहर है। उन्होंने बताया कि जगतगुरु शंकराचार्य से ही भारतीय दर्शन की एकात्मकता की यात्रा प्रारंभ होती है।
हिन्दुस्थान समाचार/राजेश्वर/संजीव
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