हिसार : प्रणामी मिशन के प्रमुख संत परमहंस डॉ. सदानंद महाराज को मिलेगा पद्मश्री अवार्ड

हिसार : प्रणामी मिशन के प्रमुख संत परमहंस डॉ. सदानंद महाराज को मिलेगा पद्मश्री अवार्ड
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हिसार : प्रणामी मिशन के प्रमुख संत परमहंस डॉ. सदानंद महाराज को मिलेगा पद्मश्री अवार्ड


अवार्ड मिलने की घोषणा से श्रद्धालुओं में खुशी की लहर

28 मई को महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू देगी सम्मान

हिसार, 19 मई (हि.स.)। प्रणामी मिशन के प्रमुख संत परमहंस स्वामी डॉ. सदानंद महाराज को महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू 28 मई को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित करेंगी। परमहंस डॉ. सदानंद महाराज को पद्मश्री अवार्ड देने की घोषणा से प्रणामी समुदाय में खुशी की लहर देखने को मिल रही है।

मानव जीवन का ये सार-तुम सेवा से पाओगे पार को जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाते हुए परमहंस डॉ. सदानंद महाराज ने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण दीन-दुखियों की सेवा में लगा रखा है।उनका जीवन त्याग, तपस्या और सेवा का जीवंत उदाहरण है। वे सुबह 4 बजे से रात को एक बजे तक सेवाकार्य में लगे रहते हैं। एक दिन में महज 3 से 4 घंटे तक विश्राम करके पुन: पूरी एनर्जी के साथ वे सेवाकार्य में लग जाते हैं।

जुई गांव में हुआ जन्म, शिक्षक से सैनिक व बाद में धारण किया वैराग्य

वैसे तो आजकल समाज में साधु-संतों तथा आश्रमों का बोल-बाला है, परंतु सच्ची सेवा तथा सच्ची साधुता को अगर देखना है तो प्रणामी मिशन के प्रमुख परमहंस डॉ. सदानंद महाराज का नाम लेना यहां सर्वथा उचित होगा। भारतीय सेना में कभी कैप्टन का प्रमोशन त्यागकर भगवां धारण करने वाले प्रणामी मिशन के संत परमहंस डॉ. सदानंद महाराज ने कुछ वर्षों तक शिक्षक के रूप में सेवाएं दी और फिर सेना में भर्ती हो गए। जब कैप्टन की प्रमोशन मिली तो सब कुछ छोड़कर वैराग्य धारण कर लिया। अब हर रोज मानवता की भलाई के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं।

एक अगस्त 1945 को भिवानी के जुई गांव में खंडेलवाल ब्राहमण परिवार में जन्मे डॉ. सदानंद महाराज ने मात्र 11 साल की उम्र में नाम धारण किया जबकि 27 साल की उम्र में ही मोह-माया त्याग कर सिलीगुड़ी में 1972 में बसंत पंचमी के दिन भगवां चोला पहन लिया। भिवानी के संत परमहंस राधिकादास महाराज ने उन्हें स्वामी मंगलदास महाराज से मिलवाया और उन्हीं से शिक्षा-दीक्षा लेकर वे समाज कल्याण, जनसेवा व गोसेवा में लग गए।

दो युद्धों में भी लिया भाग

वैराग्य धारण करने से पहले स्वामी सदानंद महाराज सरहद पर दो युद्धों के भी गवाह बन चुके हैं। उन्होंने 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध को देखकर सेना में जाने का मन बनाया और 1964 में सेना में शामिल हो गए। इसके बाद 1965 व 1971 में पाकिस्तान के साथ दो बार हुए युद्ध में भाग लिया। वर्ष 1971 के युद्ध के बाद ही उन्हें कैप्टन पद पर पदोन्नति मिली लेकिन इसके बाद उन्होंने पदोन्नति न लेकर सेना छोड़कर भगवां चोला पहन लिया।

हिन्दुस्थान समाचार/राजेश्वर/संजीव

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